Bihar’s Shiv Circuit की सियासत में धार्मिक स्थलों और सांस्कृतिक विरासत का राजनीतिक उपयोग कोई नई बात नहीं है, लेकिन हाल ही में राज्य सरकार द्वारा शुरू की गई “शिव सर्किट” परियोजना ने इसे एक नई दिशा दी है। यह पहल जहां एक ओर धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने की बात करती है, वहीं दूसरी ओर इसे आगामी चुनावों से जोड़कर भी देखा जा रहा है।
क्या है “Bihar’s Shiv Circuit”?
Bihar’s Shiv Circuit एक प्रस्तावित धार्मिक पर्यटन योजना है, जिसके अंतर्गत बिहार के 17 जिलों के प्रमुख शिव मंदिरों को एक साझा आध्यात्मिक और पर्यटन मार्ग से जोड़ा जा रहा है। इस सर्किट में वे स्थल शामिल हैं जहां भक्तों की गहरी आस्था है और हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।
इनमें शामिल हैं:
पटना: बैकुंठ धाम, बिहटा बाबा बटेश्वर नाथ
दरभंगा: बाबा कुशेश्वर स्थान
भागलपुर: बुढ़ानाथ मंदिर, सुल्तानगंज, कहलगांव
गया: बाबा कोटेश्वर नाथ
सुपौल: तिलेश्वर नाथ मंदिर
मुजफ्फरपुर: गरीब नाथ मंदिर
कटिहार, मधेपुरा, अररिया, लखीसराय, जमुई, वैशाली, समस्तीपुर समेत अन्य जिले
सरकार का कहना है कि इससे न सिर्फ राज्य की सांस्कृतिक पहचान को मजबूती मिलेगी बल्कि धार्मिक पर्यटन के ज़रिए स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बल मिलेगा।
धार्मिक पहल या चुनावी रणनीति?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस योजना के पीछे महज़ आस्था नहीं, बल्कि चुनावी समीकरण भी हैं। उत्तर प्रदेश में राम मंदिर और धार्मिक सर्किट मॉडल से एनडीए को जो फायदा हुआ, उसे बिहार में दोहराने की कोशिश की जा रही है।
दरअसल, जिन 17 जिलों को शिव सर्किट में शामिल किया गया है, वहां कुल 118 विधानसभा सीटें आती हैं। इन क्षेत्रों में यादव समुदाय की बड़ी आबादी है, जो पारंपरिक रूप से राजद का समर्थन करता रहा है। ऐसे में धार्मिक भावनाओं के सहारे इन सीटों पर राजनीतिक पकड़ मजबूत करने की कोशिश भी साफ़ नज़र आती है।
278 करोड़ की योजना, बड़े सपने
सरकार इस योजना के पहले चरण में नौ प्रमुख शिव मंदिरों के विकास पर करीब ₹278 करोड़ खर्च करने जा रही है। इनमें इन्फ्रास्ट्रक्चर, सड़क, ठहरने की व्यवस्था, लाइटिंग, और पवित्र स्थल सौंदर्यीकरण जैसी सुविधाएं शामिल हैं।
विशेष बात यह है कि सीतामढ़ी के माता जानकी मंदिर को राम मंदिर मॉडल पर विकसित किया जा रहा है। इसके लिए वही एजेंसी नियुक्त की गई है, जिसने अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण किया है।
इसी तर्ज़ पर हरिहरनाथ कॉरिडोर को भी विकसित किया जा रहा है, जैसा कि वाराणसी में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के साथ हुआ था।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी गर्म
इस योजना पर सियासी बहस भी तेज हो गई है।
राजद नेता बीमा भारती का कहना है:
“बीजेपी और जेडीयू विकास की बात नहीं करते, केवल धर्म के मुद्दों पर जनता को उलझाए रखना चाहते हैं।”
वहीं जेडीयू नेता निहोरा यादव का तर्क है:
“यह विकास की योजना है, ध्रुवीकरण की नहीं। शिव भक्तों की आस्था और पर्यटन दोनों को साथ लेकर चलना हमारा उद्देश्य है।”
क्यों है शिव सर्किट जरूरी?
सांस्कृतिक धरोहर का संवर्धन
धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा
स्थानीय रोजगार सृजन
छोटे शहरों और गांवों का बुनियादी विकास
हजारों वर्षों पुरानी आस्था को नया रूप देना
निष्कर्ष: राजनीति और आस्था की जुगलबंदी
Bihar में शिव सर्किट की पहल जहां धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा दे सकती है, वहीं यह एक सफल राजनीतिक रणनीति भी बन सकती है।
यह तय करना जनता का अधिकार है कि वह इसे आस्था का विस्तार माने या वोटों का गणित।
इस योजना के ज़रिए बिहार अपनी सांस्कृतिक विरासत को कैसे सहेजता है, और क्या यह राज्य के विकास में मददगार साबित होता है – यह आने वाले समय में साफ हो जाएगा।