दिलचस्प बात ये है कि नाम के विपरीत, black box असल में नारंगी रंग का होता है, ताकि मलबे में आसानी से दिख जाए। यह एक अत्यंत मजबूत धातु (स्टील/टाइटेनियम) से बना होता है और दो प्रमुख हिस्सों से मिलकर बनता है:
- फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (FDR):
- विमान की गति, ऊंचाई, दिशा, इंजन की स्थिति, ईंधन स्तर समेत 80+ पैरामीटर्स रिकॉर्ड करता है।
- हर सेकंड में 100-200 डेटा पॉइंट्स कैप्चर करता है।
- कॉकपिट वॉइस रिकॉर्डर (CVR):
- पायलट्स की आपसी बातचीत, एयर ट्रैफिक कंट्रोल के संवाद, अलार्म्स और कॉकपिट की सभी आवाजें रिकॉर्ड करता है।
- आखिरी 2 घंटे की ऑडियो रिकॉर्डिंग सेव रहती है। यह हादसों की जांच में कैसे मदद करता है?
- तकनीकी खराबी का पता लगाने में: FDR से पता चलता है कि क्या इंजन, नेविगेशन सिस्टम या अन्य पार्ट्स में कोई समस्या थी।
- मानवीय भूल का विश्लेषण: CVR से पायलट्स की प्रतिक्रियाएं और निर्णय प्रक्रिया समझने में मदद मिलती है।
- मौसम/बाहरी कारकों की जानकारी: विमान ने टर्ब्युलेंस या अन्य चुनौतियों का सामना किया था या नहीं। ब्लैक बॉक्स इतना टिकाऊ क्यों होता है?
- भयानक टक्कर सहने की क्षमता: 3400G (यानी 3400 गुना गुरुत्वाकर्षण बल) झेल सकता है।
- अत्यधिक तापमान सहनशीलता: 1100°C तक की गर्मी में 1 घंटे तक सुरक्षित रहता है।
- पानी में काम करने की क्षमता: 6000 मीटर की समुद्री गहराई से भी सिग्नल (37.5 kHz की ‘पिंग’) भेज सकता है। हादसे के बाद ब्लैक बॉक्स कैसे ढूंढा जाता है?
- मलबे में दिखाई देने वाला रंग: इसका नारंगी रंग और रिफ्लेक्टिव स्ट्रिप्स इसे आसानी से पहचानने में मदद करते हैं।
- अल्ट्रासोनिक पिंगर: पानी में गिरने पर यह 30 दिनों तक हर सेकंड सिग्नल भेजता रहता है।
- रडार ट्रांसपोंडर: कुछ मॉडल्स में अतिरिक्त ट्रैकिंग सिस्टम लगे होते हैं। भारत में ब्लैक बॉक्स की जांच प्रक्रिया
- एयरक्राफ्ट एक्सीडेंट इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो (AAIB) जांच करता है।
- डेटा निकालने में 2-3 सप्ताह लग सकते हैं (क्षति के स्तर पर निर्भर)।
- अंतरराष्ट्रीय हादसों में ICAO की टीम भी शामिल हो सकती है। कुछ रोचक तथ्य
- Black box की अवधारणा 1950 के दशक में आई थी।
- आधुनिक ब्लैक बॉक्स SSD (सॉलिड स्टेट ड्राइव) टेक्नोलॉजी पर काम करते हैं।
- एयरबस A380 जैसे विमानों में 4 ब्लैक बॉक्स (2 FDR + 2 CVR) लगे होते हैं।
निष्कर्ष:
Black box न सिर्फ हादसों के कारणों का पता लगाता है, बल्कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए नई सुरक्षा प्रोटोकॉल बनाने में भी मदद करता है। अहमदाबाद हादसे की जांच में भी यही डिवाइस अहम सबूत देगा, ताकि ऐसी त्रासदी फिर कभी न दोहराई जाए।