Navratri 2025 का तीसरा दिन: माँ चंद्रघंटा की पूजा, तिथि, शुभ रंग और महत्व

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By Akanksha Singh Baghel

Navratri 2025 के दूसरे दिन का महत्व

नवरात्रि का तीसरा दिन माँ दुर्गा के चंद्रघंटा स्वरूप को समर्पित होता है। इस दिन साधक माँ की आराधना कर साहस, शांति और सौभाग्य की प्राप्ति करते हैं। माँ चंद्रघंटा का स्वरूप भय और नकारात्मक शक्तियों का नाश करने वाला तथा भक्तों को शांति और संतोष प्रदान करने वाला माना जाता है।

कौन हैं माँ चंद्रघंटा?

Navratri 2025 माँ चंद्रघंटा को उनके मस्तक पर आधे चंद्रमा के आकार की घंटी धारण करने के कारण यह नाम मिला। उनका रूप सौम्य, तेजस्वी और दिव्य है। माँ के दस हाथ हैं और वे सिंह पर सवार रहती हैं। वे भक्तों के लिए करुणामयी माता हैं और शत्रुओं के लिए विनाशकारी।

माँ चंद्रघंटा की कथा

कथा के अनुसार, जब भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह तय हुआ, तो शिवजी बारातियों के साथ भयानक रूप में पहुंचे। उनके गले में सांप, शरीर पर राख और भूत-प्रेत बारातियों के रूप में थे। इस रूप को देखकर पार्वतीजी के घरवाले भयभीत हो गए। तब माता पार्वती ने माँ चंद्रघंटा का रूप धारण कर शिवजी को उनके दिव्य स्वरूप में आने के लिए विवश किया। इसी के बाद विवाह सम्पन्न हुआ। यह कथा हमें सिखाती है कि माँ चंद्रघंटा अपने भक्तों के संकट हरकर उन्हें सुख-शांति प्रदान करती हैं।

तिथि और शुभ मुहूर्त

तिथि: 2025 में नवरात्रि का तीसरा दिन 3 अक्टूबर को पड़ेगा।

शुभ मुहूर्त:

पूजन का समय: प्रातः 6:15 बजे से 8:30 बजे तक (स्थानीय समय अनुसार भिन्न हो सकता है)

अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 12:00 से 12:45 बजे तक

शुभ रंग और भोग

शुभ रंग: आज के दिन सफेद और सुनहरा रंग धारण करना अत्यंत शुभ माना गया है।

भोग: माँ चंद्रघंटा को दूध से बनी मिठाइयाँ, खासकर खीर और सफेद मिठाई अर्पित करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।

पूजन विधि
  1. सबसे पहले स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
  2. पूजन स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें।
  3. माँ चंद्रघंटा की प्रतिमा या तस्वीर को स्थापित करें।
  4. धूप-दीप जलाकर माँ का ध्यान करें।
  5. दूध या खीर का भोग अर्पित करें।
  6. “ॐ देवी चंद्रघंटायै नमः” मंत्र का जप करें।
  7. अंत में आरती कर माँ से आशीर्वाद प्राप्त करें।
माँ चंद्रघंटा की पूजा का महत्व

माँ चंद्रघंटा की पूजा करने से:

भय, संकट और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिलती है।

घर में शांति और सौभाग्य का वास होता है।

साधक को साहस, पराक्रम और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है।

विवाह और दांपत्य जीवन में आने वाली बाधाएँ दूर होती हैं।


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