Navratri के छठे दिन का महत्व
Navratri के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा से भक्तों के जीवन में साहस, बल और आत्मविश्वास का संचार होता है। अविवाहित कन्याएँ इस दिन विशेष रूप से व्रत रखकर मां से योग्य वर की प्राप्ति का आशीर्वाद मांगती हैं। ऐसा विश्वास है कि मां कात्यायनी की कृपा से विवाह में आने वाली सभी बाधाएँ दूर हो जाती हैं।
मां कात्यायनी कौन हैं?
Navratri के छठे दिन मां दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप की पूजा की जाती है। इन्हें देवी शक्ति का सबसे उग्र और दिव्य रूप माना जाता है। मां कात्यायनी का जन्म महर्षि कात्यायन के घर हुआ था, इसलिए इन्हें कात्यायनी कहा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि वे राक्षसों का नाश करने और धर्म की रक्षा के लिए अवतरित हुईं।
मां कात्यायनी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, महर्षि कात्यायन ने देवी आदिशक्ति की आराधना कर उनसे कन्या रूप में जन्म लेने का वरदान मांगा। उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया। यही पुत्री बाद में कात्यायनी देवी के नाम से प्रसिद्ध हुईं। उन्होंने महिषासुर जैसे असुर का संहार कर देवताओं को भयमुक्त किया और संसार में धर्म की स्थापना की।
छठे दिन की पूजा विधि
- प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजन स्थल पर मां कात्यायनी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- मां को पीले फूल, लाल चंदन, सुगंधित धूप और गंध अर्पित करें।
- घी का दीप जलाकर देवी का आह्वान करें।
- मां को शहद का भोग विशेष रूप से प्रिय है, अतः इसे भोग में अवश्य चढ़ाएं।
- अंत में दुर्गा सप्तशती का पाठ और मां के मंत्रों का जाप करें।
मां कात्यायनी का मंत्र
“ॐ देवी कात्यायन्यै नमः।”
इस मंत्र का जाप करने से मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।
शुभ रंग और भोग
शुभ रंग : लाल या गुलाबी रंग इस दिन पहनना शुभ माना जाता है।
भोग : मां को शहद या गुड़ से बने व्यंजन अर्पित करना उत्तम होता है।