RSS कांग्रेसी ने रखी नींव,1948 में बैन, 5 लोगों से शुरु होकर 40 देशों तक कैसे पहुंचा

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By Diti Tiwari

Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS) की नींव 27 सितंबर 1925 को विजयादशमी के दिन रखी गई थी। Nagpur में हुई एक छोटी-सी बैठक से शुरू हुआ यह संगठन आज दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन माना जाता है। अपने 100 सालों के लंबे सफर में संघ ने प्रतिबंध, आलोचनाएं और कठिनाइयाँ झेली, लेकिन आज भी यह मजबूती से खड़ा है और 40 से अधिक देशों में सक्रिय है।

RSS की पृष्ठभूमि और विचार की शुरुआत

1923 में Nagpur में गणेश विसर्जन की शोभायात्रा को लेकर हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच विवाद हुआ। प्रशासन ने हिंदुओं पर रोक लगा दी, जिससे दंगे भड़क गए। उस समय Keshav Baliram Hedgewar, जो Congress से जुड़े हुए थे, उम्मीद कर रहे थे कि पार्टी हिंदुओं की आवाज बनेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसी क्षण से उनके मन में हिंदुओं के लिए एक स्वतंत्र, मजबूत संगठन की नींव डालने का विचार गहराई से बैठ गया।

Hedgewar ने हिंदू महासभा से अलग राह चुनी

Hedgewar कुछ समय के लिए हिंदू महासभा से जुड़े, लेकिन उन्हें लगा कि यह संगठन राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के चलते हिंदुओं के अधिकारों से समझौता कर सकता है। इसलिए उन्होंने अपनी अलग राह बनाई और एक नए संगठन की स्थापना का संकल्प लिया, जो केवल हिंदू समाज के उत्थान के लिए कार्य करेगा।

27 सितंबर 1925 को हुई RSS की शुरुआत

विजयादशमी के दिन 27 सितंबर 1925 को Hedgewar ने अपने घर पर पांच लोगों के साथ बैठक बुलाई। इसमें Ganesh Savarkar, Dr. B.S. Moonje, L.V. Paranjape और B.B. Tholkar शामिल थे। इसी बैठक में संघ की नींव रखी गई और 17 अप्रैल 1926 को इसे आधिकारिक रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) नाम दिया गया।

शाखाओं की शुरुआत हुई और इसमें स्वयंसेवकों को शारीरिक प्रशिक्षण, व्यायाम और राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा कराई जाने लगी।

RSS का स्वतंत्रता आंदोलन और गांधी से जुड़ाव

हालांकि Hedgewar, Mahatma Gandhi की कई नीतियों से असहमत थे, लेकिन 1930 में उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन में व्यक्तिगत रूप से हिस्सा लिया। इस दौरान वे जेल भी गए और करीब 9 महीने कैद में रहे। जेल से लौटने के बाद Hedgewar ने युवाओं को संघ से जोड़ने पर जोर दिया। 1930 में Varanasi में पहली शाखा लगाई गई, जहां से MS Golwalkar संघ से जुड़े और बाद में इसके दूसरे सरसंघचालक बने।

1948 में लगा संघ पर प्रतिबंध

1947 में भारत को आजादी मिली, लेकिन 30 जनवरी 1948 को Nathuram Godse द्वारा Mahatma Gandhi की हत्या ने देश को हिला दिया। Godse संघ से जुड़ा हुआ था, जिसके चलते तत्कालीन सरकार ने RSS पर प्रतिबंध लगा दिया। सरसंघचालक Golwalkar को गिरफ्तार कर 6 महीने तक जेल में रखा गया।

Golwalkar ने स्वयंसेवकों से कहा कि “संदेह के बादल छंट जाएंगे और हम बेदाग निकलेंगे।” जुलाई 1949 में संघ से प्रतिबंध हटा और संगठन ने फिर मजबूती से विस्तार करना शुरू किया।

प्रतिबंध हटने के बाद, सहयोगी संगठनों की स्थापना हुई

प्रतिबंध हटने के बाद संघ ने समाज के हर वर्ग को जोड़ने के लिए अलग-अलग संगठन खड़े किए। जिनमें शामिल है – 1948 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP), 1952 में वनवासी कल्याण आश्रम और पहला सरस्वती शिशु मंदिर, 1966 में विश्व हिंदू परिषद (VHP), 1951 में भारतीय जनसंघ और बाद में 1980 में भारतीय जनता पार्टी (BJP)। इन्हीं संगठनों के जरिए संघ ने अपनी विचारधारा का प्रसार किया और राजनीतिक-सामाजिक स्तर पर पकड़ मजबूत की।

संघ के 100 साल का सफर और आज का RSS

संघ ने Hedgewar, Golwalkar, Balasaheb Deoras, Rajju Bhaiya, K.C. Sudarshan और वर्तमान सरसंघचालक Dr. Mohan Bhagwat जैसे नेताओं के नेतृत्व में निरंतर विस्तार किया।

आज RSS का दावा है कि यह दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है। केवल भारत में ही प्रतिदिन 83,000 से अधिक शाखाएं लगती हैं। संगठन से 1 करोड़ से अधिक स्वयंसेवक जुड़े हैं और यह अब 40 से अधिक देशों में सक्रिय है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का 100 वर्षों का सफर चुनौतियों, संघर्षों और उपलब्धियों से भरा रहा है। पांच लोगों से शुरू हुआ यह संगठन आज करोड़ों लोगों के जीवन को प्रभावित कर रहा है। आलोचना और विरोध के बावजूद RSS ने अपने अस्तित्व को न केवल बनाए रखा, बल्कि विश्व स्तर पर पहचान भी बनाई।

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