Padma Vibhushan Pandit Chhannulal Mishra ,भारतीय शास्त्रीय संगीत जगत ने अपने महान स्तंभ को खो दिया है। पद्मविभूषण से सम्मानित और Banaras घराने के प्रसिद्ध गायक Pandit Chhannulal Mishra का गुरुवार तड़के 91 वर्ष की आयु में निधन हो गया। सुबह 4:15 पर उन्होंने Uttar Pradesh के Mirzapur स्थित अपनी बेटी Namrata Mishra के घर पर अंतिम सांस ली।
लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे पंडित जी का इलाज Banaras Hindu University (BHU) के Institute of Medical Sciences में चल रहा था। हालांकि कुछ दिन पहले उनकी हालत में सुधार होने के बाद उन्हें discharge कर दिया गया और वे अपनी बेटी के घर लौट आए थे। डॉक्टरों की निगरानी में रह रहे पंडित जी की तबीयत अचानक बिगड़ी और गुरुवार सुबह संगीत जगत इस महानायक से सदा के लिए वंचित हो गया।
मणिकर्णिका घाट पर होगा अंतिम संस्कार
Pandit Chhannulal Mishra के निधन से पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई है। Varanasi और Mirzapur में उनके चाहने वाले स्तब्ध हैं। उनका अंतिम संस्कार आज Varanasi के मणिकर्णिका घाट पर किया जाएगा। एक ओर जहां उनके शिष्य और संगीत प्रेमी गहरे दुख में डूबे हैं, वहीं दूसरी ओर यह सांत्वना भी है कि उन्होंने अपनी गायकी से शास्त्रीय संगीत की ऐसी विरासत छोड़ी है जो हमेशा जीवित रहेगी।
Padma Vibhushan Pandit Chhannulal Mishra लंबी बीमारी से जूझ रहे थे
पिछले सात महीनों से Pandit Mishra कई गंभीर बीमारियों से जूझ रहे थे। उन्हें एक्यूट Acute Respiratory Distress Syndrome (ARDS) था, जिसके कारण उनके फेफड़ों में सूजन हो गई थी। इसके अलावा, वे diabetes, high blood pressure, osteoarthritis और prostate की बीमारी से भी पीड़ित थे।
11 सितंबर 2025 को अचानक उनकी तबीयत बिगड़ गई और उन्हें Mirzapur के Ramakrishna Sevashrama Hospital में भर्ती कराया गया। हालत बिगड़ने पर 13 सितंबर को उन्हें Varanasi के BHU refer किया गया। लगभग 17 दिन तक लगातार इलाज के बाद 27 सितंबर को उनकी तबीयत स्थिर हुई और वे discharge होकर घर लौटे। लेकिन यह सुधार अस्थायी रहा और अंततः 2 अक्टूबर की सुबह उन्होंने अंतिम सांस ली।
Banaras घराने का चमकता सितारा थे Pandit Chhannulal Mishra
Pandit Chhannulal Mishra का जन्म 3 अगस्त 1936 को Uttar Pradesh के Azamgarh जिले के Hariharpur गांव में हुआ था। वे बचपन से ही संगीत के प्रति गहरी रुचि रखते थे और धीरे-धीरे बनारस घराने की परंपरा के सबसे बड़े ध्वजवाहक बने। उनकी गायकी में बनारस की गंगा-जमुनी तहजीब की खूबसूरत झलक देखने को मिलती थी।
वे ठुमरी, दादरा, कजरी, चैती और भजन जैसी शास्त्रीय और उप-शास्त्रीय शैलियों के अद्वितीय गायक थे। उनके गीतों में भावनाओं की गहराई और सुरों की मिठास एक साथ झलकती थी। उनका प्रसिद्ध गीत “खेले मसाने में होली…” आज भी संगीत प्रेमियों की आत्मा को छू लेता है और हमेशा गूंजता रहेगा।
Pandit Mishra ki गुरु परंपरा और शिक्षा
संगीत की शिक्षा Pandit Mishra ने अपने गुरु उस्ताद Abdul Ghani Khan और Pandit Thakur Prasad Mishra से प्राप्त की। इन गुरुओं के मार्गदर्शन ने उनके संगीत को वह गहराई और परंपरा दी, जिसने उन्हें अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई।
उनकी गायकी की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे रागों की शुद्धता के साथ भावनाओं का ऐसा समन्वय करते थे, जिससे श्रोता उनके सुरों में खो जाते थे। मंच पर उनकी उपस्थिति शास्त्रीय संगीत को जीवंत बना देती थी।
Pandit Mishra जी की उपलब्धियां
भारतीय शास्त्रीय संगीत में उनके योगदान को देश और विदेश दोनों जगह सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने उन्हें वर्ष 1994 में पद्म भूषण और 2010 में पद्म विभूषण से अलंकृत किया। इसके अलावा उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और उत्तर प्रदेश सरकार का यश भारती सम्मान भी प्राप्त हुआ।
उनकी ख्याति केवल भारत तक सीमित नहीं रही, बल्कि उन्होंने विदेशों में भी भारतीय शास्त्रीय संगीत का परचम लहराया।
उनका जाना एक युग का अंत है
पंडित छन्नूलाल मिश्र का जाना केवल बनारस घराने के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे भारतीय संगीत जगत के लिए अपूर्णीय क्षति है। उनकी साधना, उनकी रचनाएं और उनकी आवाज़ हमेशा आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनी रहेंगी।