न्यायमूर्ति B.R. gavai 14 मई 2025 को भारत की न्यायपालिका ने एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की, जब न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई ने देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ग्रहण की। राष्ट्रपति भवन में शपथ लेने के बाद जब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपना पदभार संभाला, तो उन्होंने “जय भीम” का उद्घोष करते हुए अपने अभिवादन की शुरुआत की। यह नारा भारतीय संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर की विचारधारा और सामाजिक न्याय के संघर्ष से जुड़ा है। सुप्रीम कोर्ट जैसे सर्वोच्च मंच से इस नारे का उच्चारण सामाजिक समरसता की दिशा में एक महत्वपूर्ण संकेत माना गया।
सामाजिक प्रतिनिधित्व की दिशा में ऐतिहासिक कदम
न्यायमूर्ति B.R. gavai की नियुक्ति केवल एक संवैधानिक औपचारिकता नहीं, बल्कि भारत के न्यायिक इतिहास में सामाजिक समावेशिता की दिशा में एक बड़ा कदम है। वे देश के पहले बौद्ध मुख्य न्यायाधीश हैं और अनुसूचित जाति समुदाय से इस पद पर आसीन होने वाले केवल दूसरे व्यक्ति हैं। उनका कार्यकाल 23 नवंबर 2025 तक रहेगा। उनकी नियुक्ति यह दर्शाती है कि भारत की न्यायपालिका अब केवल विधिक दक्षता ही नहीं, बल्कि सामाजिक संवेदनशीलता और प्रतिनिधित्व को भी महत्व दे रही है।
न्यायिक फैसलों में निर्णायक भूमिका
न्यायमूर्ति B.R. gavai ने अपने करियर के दौरान कई ऐसे फैसलों में भागीदारी की है, जो भारत की संवैधानिक व्याख्या और लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण रहे हैं। वे उस संविधान पीठ का हिस्सा रहे जिसने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाने के केंद्र सरकार के फैसले को संवैधानिक घोषित किया। उन्होंने चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक घोषित करने वाले ऐतिहासिक निर्णय में भी भाग लिया, जो राजनीतिक वित्तीय पारदर्शिता को लेकर एक बड़ा कदम माना गया।
इसके अलावा, वे 2016 की नोटबंदी को वैध ठहराने वाली पीठ का हिस्सा भी रहे। यह निर्णय यह स्पष्ट करता है कि आर्थिक नीतियों की समीक्षा में न्यायपालिका की भूमिका कितनी व्यापक हो सकती है। ऐसे महत्वपूर्ण मामलों में उनकी भूमिका ने उन्हें एक संतुलित और संवैधानिक दृष्टिकोण वाले न्यायाधीश के रूप में स्थापित किया।
राजनीतिक और सामाजिक रूप से संवेदनशील मामलों में हस्तक्षेप
न्यायमूर्ति B.R. gavai ने कई संवेदनशील मामलों में भी साहसिक और न्यायोचित निर्णय दिए हैं। उन्होंने अवैध बुलडोजर कार्रवाई के मामलों में सख्त टिप्पणियां कीं और राज्य को सीमित करने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किए। आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसोदिया को मनी लॉन्ड्रिंग के एक प्रमुख मामले में दी गई जमानत का निर्णय कानूनी दृष्टि से मिसाल बना और इसी आधार पर अन्य आरोपियों को भी राहत मिली।
उन्होंने राहुल गांधी की ‘मोदी सरनेम’ मानहानि मामले में सजा पर रोक लगाते हुए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में संतुलन स्थापित किया। इसके साथ ही, उन्होंने तीस्ता सीतलवाड़ को 2002 के गुजरात दंगों से जुड़े मामले में नियमित ज़मानत दी, जो नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए एक महत्त्वपूर्ण निर्णय माना गया।
संविधान की आत्मा के प्रति प्रतिबद्धता का संकेत
न्यायमूर्ति B.R. gavai की नियुक्ति केवल व्यक्तिगत सफलता नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र और न्याय प्रणाली की परिपक्वता का भी प्रमाण है। सुप्रीम कोर्ट के भीतर “जय भीम” का उद्घोष भारतीय संविधान की आत्मा — न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व — को जीवंत करने का एक सशक्त प्रतीक बन गया। यह स्पष्ट करता है कि भारतीय न्यायपालिका अब केवल निर्णयों के माध्यम से ही नहीं, बल्कि प्रतीकों और विचारों के ज़रिए भी संवैधानिक मूल्यों को नई पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध है।