Bihar Election से पहले AIMIM की बड़ी पहल, ओवैसी ने शुरू की “सीमांचल न्याय यात्रा”

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By Puspraj Singh

Bihar Election : बिहार में विधानसभा चुनाव की सुगबुगाहट के बीच सियासी सरगर्मी तेज़ हो गई है। सभी दल अपने-अपने स्तर पर जनता के बीच पैठ बनाने की कोशिशों में जुटे हैं। इसी कड़ी में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने एक बड़ा अभियान शुरू किया है। पार्टी अध्यक्ष और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने मंगलवार को बिहार के सीमांचल इलाके से अपनी “सीमांचल न्याय यात्रा” की शुरुआत की। यह यात्रा 24 सितंबर से 27 सितंबर तक चार दिनों तक चलेगी, जिसमें कई जनसभाएँ और रोडशो आयोजित किए जाएंगे।

Bihar Election सीमांचल क्यों है खास?

बिहार का सीमांचल इलाका — जिसमें किशनगंज, अररिया, पूर्णिया और कटिहार जैसे ज़िले आते हैं — सियासी दृष्टि से हमेशा अहम रहा है। यहाँ मुस्लिम जनसंख्या अच्छी-खासी है और AIMIM पहले से ही इस क्षेत्र में अपनी पकड़ बनाए रखने की कोशिश करती रही है। 2020 के विधानसभा चुनाव में AIMIM को सीमांचल क्षेत्र से पाँच सीटें मिली थीं, जिसने पार्टी को बिहार की राजनीति में अचानक चर्चाओं में ला दिया। हालांकि बाद में उसके चार विधायक राजद में शामिल हो गए, लेकिन एक सीट पर पार्टी की मौजूदगी आज भी बनी हुई है।

ओवैसी का संदेश

ओवैसी ने यात्रा की शुरुआत करते हुए कहा कि सीमांचल के लोग दशकों से उपेक्षा झेलते आए हैं। उन्होंने कहा, “यह इलाका बाढ़, बेरोज़गारी, ग़रीबी और पिछड़ेपन की मार झेल रहा है। यहाँ की जनता को न्याय दिलाना AIMIM का संकल्प है। हम सिर्फ़ वोट लेने नहीं आए हैं, बल्कि सीमांचल की आवाज़ को विधानसभा तक पहुँचाने आए हैं।”

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि राज्य की बड़ी पार्टियाँ चुनाव के समय यहाँ आती हैं, वादे करती हैं, लेकिन चुनाव जीतने के बाद सीमांचल की सुध लेना बंद कर देती हैं। AIMIM ने इस अभियान को पूरी तरह “जन-न्याय” से जोड़ते हुए बताया कि इसका मकसद जनता की आवाज़ को बुलंद करना है।

चुनावी समीकरण का Bihar Election 2025 पर असर

AIMIM की यह यात्रा चुनावी समीकरण पर सीधा असर डाल सकती है। सीमांचल इलाका पारंपरिक रूप से राजद और कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है, लेकिन यहाँ बीजेपी और जदयू भी लगातार अपने संगठन को मजबूत कर रहे हैं। ऐसे में AIMIM की सक्रियता त्रिकोणीय या बहुकोणीय मुकाबले की स्थिति बना सकती है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर AIMIM को सीमांचल में अच्छा जनसमर्थन मिलता है तो यह महागठबंधन के वोट बैंक में सेंध लगा सकता है। वहीं बीजेपी और जदयू के लिए यह अवसर भी बन सकता है क्योंकि मुस्लिम बहुल सीटों पर विपक्षी वोटों के बंटवारे से उन्हें फायदा मिल सकता है।

AIMIM की रणनीति

AIMIM ने इस यात्रा के लिए सीमांचल के छोटे कस्बों और गाँवों को खासतौर पर चुना है। ओवैसी जहाँ जनसभाओं में लोगों को संबोधित करेंगे, वहीं स्थानीय नेताओं को भी आगे लाने की कोशिश की जाएगी। पार्टी का जोर इस बात पर है कि लोगों को यह एहसास कराया जाए कि AIMIM सिर्फ मुस्लिम मुद्दों की बात नहीं करती, बल्कि क्षेत्रीय विकास और सामाजिक न्याय के सवाल भी उठाती है।

जनता की प्रतिक्रिया

यात्रा की शुरुआत के पहले ही दिन लोगों की भीड़ ने AIMIM नेताओं का स्वागत किया। कई जगहों पर युवाओं ने नारेबाजी की और ओवैसी को “सीमांचल का नेता” बताया। हालांकि कुछ लोगों ने सवाल भी उठाए कि AIMIM सिर्फ चुनावी मौसम में सक्रिय क्यों होती है।कुल मिलाकर, AIMIM की “सीमांचल न्याय यात्रा” ने बिहार की राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है। यह यात्रा पार्टी के लिए अस्तित्व की लड़ाई भी है और अवसर भी। एक ओर इसे सीमांचल में अपनी राजनीतिक जड़ें और मजबूत करने का मौका मिलेगा, वहीं दूसरी ओर अन्य दलों के लिए चुनौती भी बढ़ेगी। विधानसभा चुनाव नज़दीक आते-आते यह साफ हो जाएगा कि ओवैसी की यह यात्रा महज़ सियासी शोर है या फिर सीमांचल की राजनीति में नया समीकरण गढ़ने में कामयाब होती है।

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