Bihar Flood: जून का महीना अभी पूरा भी नहीं हुआ और बिहार में बाढ़ को लेकर सरकार पहले ही अलर्ट मोड पर आ गई है। राज्य सरकार ने 16 जिलों के जिलाधिकारियों को विशेष निर्देश जारी किए हैं – राहत और बचाव की तैयारी शुरू की जाए।
लेकिन इस चेतावनी के बीच एक सवाल हर किसी के मन में है – जब इस बार बारिश औसत से कम हुई है, तो बाढ़ का खतरा क्यों मंडरा रहा है?
Patna: हर साल लौटती है तबाही की लहर
बिहार भारत के उन राज्यों में है, जहां बाढ़ हर साल की त्रासदी बन चुकी है। गंगा, कोसी, गंडक, बागमती और घाघरा जैसी नदियों की गोद में बसा बिहार, पानी की अत्यधिक उपलब्धता के बावजूद सुरक्षित नहीं है।
हर साल जून से सितंबर के बीच लाखों लोग बेघर होते हैं, हजारों करोड़ की फसल तबाह होती है, और कई ज़िंदगियाँ पानी में बह जाती हैं।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, राज्य की लगभग 73% भूमि बाढ़ प्रभावित है और 33 जिले किसी न किसी रूप में बाढ़ की चपेट में आते हैं।
कम बारिश, फिर भी डूब क्यों जाता है बिहार?
इस साल अब तक बिहार में सामान्य से कम बारिश दर्ज की गई है, लेकिन फिर भी बाढ़ का खतरा बना हुआ है। इसका मुख्य कारण है – नेपाल से आने वाली नदियों पर नियंत्रण की कमी।
नेपाल से निकलने वाली नदियां जैसे कोसी, कमला, बागमती और गंडक, बिहार में प्रवेश करते ही तेज़ी से बहती हैं और फिर मैदानों में फैल जाती हैं। नेपाल में जब मूसलाधार बारिश होती है, तो पानी सीधे बिहार के उत्तरी जिलों में घुस आता है।
नेपाल और भारत के बीच जल प्रबंधन को लेकर समझौते ज़रूर हैं, लेकिन इनकी ज़मीनी हकीकत अक्सर खोखली साबित होती है।
नेपाल में न तो पर्याप्त बांध हैं, और न ही ऐसी जलधारण प्रणालियां, जो पानी की मात्रा को नियंत्रित कर सकें।
कोसी – बिहार की ‘शोक नदी’
कोसी नदी का नाम लेते ही 2008 की भयावह बाढ़ लोगों की आंखों में तैरने लगती है। उस साल कोसी ने अचानक अपना रास्ता बदल लिया था, जिससे लाखों लोग विस्थापित हो गए थे। करीब 500 से अधिक लोगों की जान गई थी और अरबों की संपत्ति का नुकसान हुआ था। कोसी आज भी बिहार की सबसे खतरनाक नदी मानी जाती है, जो हर साल अपनी धार बदलने और कटाव करने की वजह से बर्बादी की नई इबारत लिखती है।
पटना जैसे शहर भी नहीं बचे
बिहार में बाढ़ सिर्फ गांवों तक सीमित नहीं है। राजधानी पटना समेत कई बड़े शहर भी अब शहरी बाढ़ (Urban Flooding) की चपेट में हैं।
2019 की पटना बाढ़ आज भी लोगों को याद है, जब घुटनों तक नहीं, कमर तक पानी भर गया था। लोग छतों पर फंसे रहे, मोबाइल से मदद की गुहार लगाते रहे।
इस शहरी संकट के पीछे मुख्य कारण हैं –
- जर्जर ड्रेनेज सिस्टम
- अवैध निर्माण
- वर्षा जल निकासी की योजना का अभाव
- प्रशासन की तैयारी और जनता की बेचैनी
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सरकार हर साल की तरह इस बार भी कह रही है – हम तैयार हैं। बचाव नौकाएं तैनात की जा रही हैं, राहत सामग्री स्टोर की जा रही है, और चेतावनी प्रणाली को सक्रिय किया जा रहा है। लेकिन लोगों का भरोसा इन तैयारियों पर उतना नहीं रहा। हर साल राहत शिविरों की दशा, साफ पानी की कमी, और राशन वितरण में अनियमितता की खबरें लोगों को डराती हैं।
बाढ़: एक प्राकृतिक आपदा या विकास की विफलता?
विशेषज्ञ मानते हैं कि बिहार में बाढ़ अब केवल प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि विकास की असफलता बन चुकी है। बाढ़ से निपटने के लिए नदियों की गहराई बढ़ाने, जलनिकासी की व्यवस्था सुधारने और बाढ़ पूर्व चेतावनी प्रणाली को ज़मीनी स्तर तक मजबूत करने की ज़रूरत है। लेकिन यह सब तभी संभव है जब राजनीतिक इच्छाशक्ति मज़बूत हो और योजनाएं फाइलों से निकलकर ज़मीन पर उतरें।
जन-उपायों से भी बंधती है उम्मीद
बिहार के कई गांवों में लोग अब खुद बाढ़ से निपटने की पहल कर रहे हैं। छोटे बांध, ऊंचे चबूतरे, अस्थाई शरण स्थल और कम्युनिटी अलर्ट सिस्टम जैसे उपायों ने राहत दी है। इन प्रयासों से यह साबित होता है कि यदि लोगों को संसाधन और जानकारी मिले, तो वे खुद भी बाढ़ से लड़ सकते हैं।अब वक्त है सवाल पूछने का: बिहार हर साल डूबता है। लोग हर साल विस्थापित होते हैं। और सरकार हर साल तैयार होने का दावा करती है।
क्या इस चक्र को कभी तोड़ा जाएगा?
जब बारिश कम हो तब भी बाढ़ आए, तो यह स्पष्ट संकेत है कि सिर्फ कुदरत नहीं, सिस्टम भी दोषी है। बिहार को अब सिर्फ राहत की नहीं, स्थायी समाधान की ज़रूरत है।