Covid-19 Vaccines: क्या कोरोना वैक्सीन से हमारी उम्मीदों से कम ज़िंदगियाँ बचीं?

Photo of author

By Akanksha Singh Baghel

Covid-19 vaccines,नई स्टडी के चौंकाने वाले खुलासे

स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक नई रिसर्च में दावा किया गया है कि कोविड वैक्सीन से उतनी जानें नहीं बचीं, जितनी पहले सोची जा रही थीं। जहां WHO ने दावा किया था कि पहले साल में 1.44 करोड़ (14.4 मिलियन) जानें बची थीं, वहीं स्टैनफोर्ड का नया अध्ययन कहता है कि यह संख्या सिर्फ 25 लाख (2.5 मिलियन) के आसपास रही।


आंकड़ों का अंतर: WHO बनाम स्टैनफोर्ड

संस्था अनुमानित बचाई गई जानें

संस्थाअनुमानित बचाई गई जाने
WHO (2022)14.4मिलियन(1.44करोड़)
बाद में अपडेटेड अनुमान20मिलियन (2 करोड़)
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी (नया अध्ययन)2.5 मिलियन (25लाख)

इस अंतर के पीछे शोधकर्ताओं ने शुरुआती अनुमानों को अत्यधिक आशावादी बताया है।


उम्र के अनुसार बचाई गई जानें

आयु वर्ग प्रतिशत (%) बचाई गई जानें

आयु वर्ग प्रतिशत(%)बचाई गई जाने
0-190.01%299
20-290.07%1808
30-390.9%22,183
40-492.3%58,690
50-597.1%179,702
60-6920.5%519,836
70+57.3%1451,145
70++11.8%299,205

निष्कर्ष: 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को सबसे ज्यादा लाभ मिला।


किसे मिला सबसे ज़्यादा फायदा?

बचाई गई 10 में से 9 जानें 60+ उम्र के लोगों की थीं।20 साल से कम उम्र के युवाओं में सिर्फ 200 जानें बचीं।20-30 वर्ष के लोगों में यह आंकड़ा था 1,800।

  • एक 30 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति की जान बचाने के लिए 100,000 खुराकें देनी पड़ीं।
  • तुलना में, 5,400 खुराकें एक 70+ बुजुर्ग की जान बचा सकती थीं।
  • 14.8 मिलियन लाइफ-ईयर्स बचाए गए।

Covid-19 vaccines से सबसे ज़्यादा लाभ बुजुर्गों को हुआ।


क्या सभी को Covid-19 vaccines देना सही था?

शोधकर्ताओं का मानना है कि:

सभी को टीका लगाने की नीति पर पुनर्विचार जरूरी है।भविष्य में लाभ-हानि विश्लेषण के आधार पर रणनीति बनानी चाहिए।ज़्यादा जोखिम वाले समूहों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।


वैक्सीन के जोखिम और चिंताएँ

UK में 17,000+ लोग वैक्सीन से नुकसान होने की शिकायत कर चुके हैं।mRNA टीकों से मायोकार्डिटिस जैसी समस्याएँ भी रिपोर्ट की गई हैं।खासतौर पर युवा आबादी के लिए जोखिम ज्यादा था।


भविष्य के लिए सबक

यह अध्ययन बताता है:

भविष्य की महामारियों के दौरान हमें डेटा आधारित रणनीति अपनानी चाहिए।क्लिनिकल ट्रायल और विश्लेषण पर ज्यादा जोर देना होगा।वैक्सीन वितरण नीति में लचीलापन और प्राथमिकता ज़रूरी है।


विज्ञान की प्रकृति: विकसित होती समझ

यह शोध हमें याद दिलाता है कि विज्ञान निरंतर विकसित होता है।प्रारंभिक अनुमान अक्सर सीमित डेटा पर आधारित होते हैं।नई जानकारी के आधार पर नीतियों में बदलाव ज़रूरी होता है।हमें हर नए डेटा का खुले मन से स्वागत करना चाहिए ताकि स्वास्थ्य और सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जा सके।

Leave a Comment

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.