Gopidas, पढ़ाई की कोई उम्र नहीं होती
Gopidas,केरल के अलाप्पुझा जिले के रहने वाले पी. डी. गोपीदास ने यह कहावत सच कर दिखाई।
उन्होंने 80 साल की उम्र में 12वीं समकक्ष परीक्षा पास कर अपनी मां का सपना पूरा किया।
इसके अलावा, उनकी उपलब्धि साबित करती है कि शिक्षा की कोई आयु सीमा नहीं होती।
पांचवीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी
गोपीदास का बचपन पढ़ाई से ज्यादा खेलकूद में बीता और पढ़ाई में मन नहीं लगा।
साल 1957-58 में उन्होंने पूनथोट्टम सेंट जोसेफ स्कूल में पांचवीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी।
हालांकि, उनकी मां हमेशा चाहती थीं कि बेटा पढ़ाई जारी रखे और जीवन में आगे बढ़े।
बीड़ी बनाने से लेकर सिक्योरिटी गार्ड तक
पढ़ाई छोड़ने के बाद गोपीदास ने मां के साथ बीड़ी बनाने का काम शुरू किया।
इसके बाद उन्होंने नारियल रेशा फैक्ट्री और सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी भी की।
इस बीच, आर्थिक स्थिति खराब नहीं थी, लेकिन पढ़ाई छोड़ने का अफसोस उन्हें सताता रहा।
मां का सपना बनी प्रेरणा
हालांकि मां अब इस दुनिया में नहीं रहीं, लेकिन उनका सपना गोपीदास के दिल में ज़िंदा रहा।
इसके अलावा, मां की इच्छा पूरी करने के लिए उन्होंने बुजुर्ग अवस्था में पढ़ाई शुरू करने का निश्चय किया।
उनका मानना है कि अगर इच्छाशक्ति मजबूत हो तो कोई भी सपना अधूरा नहीं रहता।
साक्षरता मिशन ने दिखाई राह
कई दशकों बाद गोपीदास ने साक्षरता मिशन के तहत पढ़ाई दोबारा शुरू की।
उन्होंने पहले सातवीं पास की, फिर दसवीं की समकक्ष परीक्षा सफलतापूर्वक पूरी की।
साल 2020 में कोविड महामारी के दौरान उन्होंने दसवीं की परीक्षा पास कर मिसाल बनाई।
इस बीच, उन्होंने स्वास्थ्य समस्याओं के बावजूद 11वीं और 12वीं की पढ़ाई पूरी की।
अब बनना चाहते हैं वकील
Gopidas का सफर यहीं खत्म नहीं हुआ, बल्कि अब उन्होंने नया लक्ष्य तय कर लिया है।
वहीं, 12वीं पास करने के बाद अब वे लॉ की पढ़ाई करके वकालत करना चाहते हैं।
उनका कहना है कि मेहनत और लगन से कोई भी सपना पूरा किया जा सकता है।
युवाओं और बुजुर्गों के लिए सीख
आज जब कई युवा पढ़ाई बीच में छोड़ देते हैं, तब गोपीदास सबके लिए प्रेरणा बने।
इसके अलावा, उनकी कहानी यह संदेश देती है कि शिक्षा कभी व्यर्थ नहीं जाती।
वहीं, उम्र सीखने में बाधा नहीं है और धैर्य से हर सपना पूरा हो सकता है।