हरियाणा की राजनीति में धर्म बढ़ा फैक्टर है। अपनी सियासी राह आसान करने के लिए बड़े-बड़े राजनेता साधु-संतों व डेरों की चरण वंदना करते हैं।जब भी हरियाणा चुनाव हो तो डेरों का समर्थन पाने के लिए राजनीतिक दलों में होड़ लग जाती है। इसके पीछे कारण है कि ढेरों के अनुयायी प्रदेश के हर शहर गांव में फैले हैं और ये काफी हद तक डेरे के संदेश पर मतदान करते हैं। ऐसे में एक बड़े वोट बैंक के रूप में डेरों से निकलकर हरियाणा की राजनीति का रास्ता जाता है। वहीं, कई संत भी राजनीति में उतरकर राजधर्म में आए हैं। इस बार विधानसभा चुनाव में छह साधु-संत और डेरे, गुरुद्वारे के एक-एक सेवादार चुनाव में उतरे हैं। प्रदेश की देशवाली बेल्ट (रोहतक, झज्जर, बहादुरगढ़) के आसपास कई बड़े डेरे हैं। अकेले रोहतक में तीन डेरे व मठ हैं लक्ष्मणपुरी डेरा (गोकर्ण) का इतिहास पुराना है यहां गद्दी पर विराजमान जूना अखाड़ा के उपाचार्य बाबा कपिल पुरी महाराज के लाखों अनुयायी हैं। प्रदेश की 20 से अधिक विधानसभा सीटों पर डेरे का प्रभाव है इनके कई शिष्य राजनीति में सक्रिय हैं लोकसभा चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री नायब सैनी कपिल पुरी महाराज से आशीर्वाद लेने पहुंचे थे। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा सहित कांग्रेस के अन्य नेता भीइनके भक्त हैं।
बाबा बालकपुरी डेरे में महामंडलेश्वर कर्णपुरी महाराज गद्दी पर विराजमान हैं। इनके भी अनुयायी राजनीति में सक्रिय हैं। कई पूर्व मुख्यमंत्री इन डेरों में आशीर्वाद ले चुके हैं।
रोहतक में ही नाथ संप्रदाय का बाबा मस्तनाथ मठ है। नाथ संप्रदाय के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बाबा बालकनाथ इस समय गद्दी पर विराजमान हैं। आपको बता दें कि यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ नाथ संप्रदाय के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और इस मठ का राजनीति में बड़ा प्रभाव है। बाबा बालकनाथ अलवर से सांसद हुए। बीते राजस्थान विधानसभा चुनाव में वे तिजारा विधानसभा क्षेत्र चुनाव भी जीते हैं।
जीटी बेल्ट में पंजाब व हरियाणा के डेरे काफी प्रभावी हैं। डेरा राधा स्वामी व्यास सत्संग का कई क्षेत्रों में प्रभाव है। डेरा किसी पार्टी का समर्थन नहीं करता लेकिन दलित समाज में इस डेरे की खासी पैठ है। सीएम नायब सैनी, पूर्व सीएम मनोहर लाल, पंजाब के सीएम भगवंत मान व हिमाचल के सीएम सुखविंदर सुक्खू डेरा प्रमुख गुरविंदर सिंह ढिल्लों से आशीर्वाद ले चुके हैं।
निरंकारी डेरा भी जीटी बेल्ट पर खासा प्रभाव रखता है और निरंकारी मिशन का सालाना समागम पानीपत क्षेत्र में होता है। अंबाला, जगाधरी, करनाल, कुरुक्षेत्र, गोहाना, सोनीपत सहित कई जिलों में डेरे के अनुयायी हैं। डेरे की राजनीतिक गतिविधियां ज्यादी प्रभावी नहीं हैं, लेकिन इनका आंतरिक प्रभाव काफी है।
वहीं बात करें सिरसा के डेरा सच्चा सौदा का तो वो हमेशा से विवादों में रहा है लेकिन इसका प्रभाव पूरे हरियाणा में है डेरा मुखी गुरमीत राम रहीम दुष्कर्म और हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहा है, लेकिन चुनाव पूर्व उसे उसे पैरोल या फरलो पर जेल से बाहर आने का अवसर मिलता रहा है। रोहतक की सुनारियां जेल से गुरमीत राम रहीम उत्तर प्रदेश के बागपत स्थित बरनावा आश्रम जाता है और वहीं से अनुयायियों को संदेश देता है। पहले डेरे की राजनीतिक शाखा तय करती थी कि किस पार्टी को डेरा प्रेमी (अनुयायी) वोट देंगे। हालांकि, अब इस शाखा को भंग कर दिया गया है।
इस बार विधानसभा चुनाव में बरवाला से महामंडलेश्वर दर्शन गिरी, पानीपत शहर से स्वामी अग्निवेश जुलाना से सुनील जोगी, पृथला से अब्दूतनाथ, चरखी दादरी से कर्मयोगी नवीन, तोशाम से बाबा बलवान नाथ लड़ रहे हैं। इसके अलावा बाबा भुम्मन शाह डेरे के सेवादार बलदेव कुमार ऐलनाबाद और गुरुद्वारा बेगमपुरा ट्रस्ट के सतनाम सिंह अंबाला सिटी से चुनाव मैदान में उतरे हैं।राजनीति के विशेषज्ञों का मानना है कि डेरों से निचले तबके के लोग ज्यादा जुड़ते हैं और डेरों की स्थापना के पीछे का मुख्य कारण असमानता व सामाजिक भेदभाव भी है। अधिकतर डेरों में ज्यादातर निचले तबके से अनुयायी जुड़ते हैं। ये शाकाहार, नशामुक्ति, महिलाओं का सम्मान और भजन-कीर्तन करने का संदेश देते हैं। इन डेरों में अनुयायी एक-दूसरे की मदद भी करते हैं।बहरहाल धर्म और राजनीति का संबंध पिछले कुछ सालों से गहरा होता जा रहा है। डेरों का इतना प्रभाव नहीं है कि वो पूरा चुनाव किसी को जिता सकें, लेकिन कई विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां इनके अनुयायी बहुसंख्य हैं। वे डेरे का ही आज्ञा मानते हैं। हर राजनीतिक दल चाहता है कि डेरा प्रमुख कहीं न कहीं समर्थकों को उनके पक्ष में वोट डालने इशारा कर दें।
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