Leh-Ladakh (संघ-क्षेत्र) में पिछले कुछ वर्षों से राजनीतिक और संवैधानिक अधिकारों की मांग लगातार उठती रही है, लेकिन सितंबर 2025 में यह आंदोलन हिंसक रूप ले बैठा। नौकरियों की कमी, संसाधनों पर बाहरी दबाव, सांस्कृतिक पहचान के संरक्षण और राजनीतिक प्रतिनिधित्व की कमी जैसे मुद्दों ने स्थानीय जनता के असंतोष को और गहरा कर दिया।
हाल की घटनाएँ और हिंसा
24 सितंबर को लेह में भूख हड़ताल और शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन अचानक हिंसा में बदल गए। यह आंदोलन पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक और अन्य स्थानीय नेताओं के नेतृत्व में चल रहा था। दो वरिष्ठ प्रदर्शनकारियों की तबीयत बिगड़ने से लोगों की भावनाएँ भड़क गईं और देखते ही देखते भीड़ ने पत्थरबाजी की, बीजेपी कार्यालय और सरकारी गाड़ियों को आग लगा दी। पुलिस ने आंसू गैस, लाठीचार्ज और कई जगह गोलियां चलाईं। इस झड़प में चार लोगों की मौत हो गई और 80 से अधिक लोग घायल हुए। इसके बाद लेह और कारगिल जिलों में कर्फ्यू लगाया गया।
प्रदर्शनकारियों की मुख्य मांगें
लद्दाख को राज्य-दर्जा देना।
छठी अनुसूची लागू करना।
Leh और Kargil के लिए अलग-अलग लोकसभा सीटें बनाना।
सरकारी नौकरियों और विकास योजनाओं में स्थानीय युवाओं को प्राथमिकता देना।
सरकार की प्रतिक्रिया
Leh-Ladakh,केंद्र सरकार का कहना है कि हिंसा कुछ नेताओं के उकसाऊ बयानों के कारण भड़की। गृह मंत्रालय ने Leh Apex Body और Kargil Democratic Alliance के साथ वार्ता शुरू की है और 6 अक्टूबर को नई बैठक प्रस्तावित की गई है। पुलिस व प्रशासन ने हिंसा फैलाने वालों पर कड़ी कार्रवाई का आश्वासन दिया है।
लद्दाख की भौगोलिक और रणनीतिक अहमियत
लद्दाख भारत की चीन और पाकिस्तान से लगी सीमाओं पर स्थित है। गलवान घाटी और कारगिल युद्ध जैसी ऐतिहासिक घटनाएँ इसके महत्व को दर्शाती हैं। यहाँ सेना की भारी तैनाती है और कोई भी राजनीतिक बदलाव सीधे भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और सीमा प्रबंधन से जुड़ा होता है।
पर्यावरण और संस्कृति की चुनौतियाँ
ग्लेशियरों के पिघलने से पानी की कमी बढ़ रही है, जबकि अनियंत्रित पर्यटन और औद्योगिक परियोजनाएँ प्राकृतिक संतुलन को खतरे में डाल रही हैं। स्थानीय लोगों को डर है कि संवैधानिक सुरक्षा न मिलने पर उनकी जमीन और संसाधन बाहरी लोगों के हाथों में चले जाएंगे। साथ ही आधुनिक दबावों और पलायन के कारण लद्दाखी भाषा, कला और परंपराएँ भी प्रभावित हो रही हैं।
संभावित समाधान और आगे की राह
केंद्र और स्थानीय प्रतिनिधियों के बीच पारदर्शी संवाद हो।
स्थानीय परिषदों और निकायों को अधिक अधिकार दिए जाएँ।
लद्दाख के लिए एक विशेष “छठी अनुसूची मॉडल” तैयार किया जाए।
पर्यटन और औद्योगिक परियोजनाओं को नियंत्रित करने वाली पर्यावरण नीति बने।
लद्दाख की भाषा, कला और संस्कृति के संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जाए।