“मेरा पानी उतरता देख, मेरे किनारे पर घर न बसा लेना, समुंदर हूं, मैं लौटकर वापस जरूर आऊंगा।’महाराष्ट्र ने अपना भाग्य उस भाग्यविधाता के नाम किया है जिसे आप देवेंद्र फडणवीस कहते हैं ।बहुमत के अभाव में मुख्यमंत्री पद छोड़ने के वक्त विरोधियों से अपने लौट आने के इस अपने वादे को संघर्ष की गलियों में अपने तकदीर की लकीरों को अपने हाथों से बनाने बिगाड़ने शख्स ने निभाकर राजनीति में अपने कद को उठा लिया है। महज 22 साल की उम्र में पार्षद और 27 की उम्र में नागपुर में मेयर बनकर सियासी जीवन शुरू करने वाले 54 वर्षीय महाराष्ट्र की राजनीति का महानायक फडणवीस की एक बड़ी खूबी है कि वह अपनी पार्टी के बेहद अनुशासित सिपाही हैं। पार्टी ने जब उनसे कहा कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे बनेंगे और आप उप- मुख्यमंत्री बन जाइए, तो वह तुरंत मान गए थे। इसी समझदारी ने उन्हें सियासत के शिखर पर ला खड़ा किया है।महाराष्ट्र को आखिरकार एक मुख्यमंत्री और दो-दो उप-मुख्यमंत्री मिल गए। देवेंद्र सरिता गंगाधरराव फडणवीस ने तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है, तो इसके पीछे उनकी अथक मेहनत और कुशल रणनीति का बड़ा योगदान है। फडणवीस साफ-सुथरी छवि के अपेक्षाकृत युवा नेता हैं। पार्टी और गठबंधन के हित में फड़णवीस के लिए उप-मुख्यमंत्री पद स्वीकार करना अपेक्षाकृत आसान फैसला था, पर उप-मुख्यमंत्री पद स्वीकार करने का फैसला लेने में एकनाथ शिंदे ने दस दिन से ज्यादा समय लगा दिया। गुरुवार को भी उन्होंने स्पष्ट नहीं किया कि वह उप- मुख्यमंत्री पद के लिए मान गए हैं। शुक्रवार सुबह ही यह सूचना स्पष्ट हुई कि फडणवीस मुख्यमंत्री और अजित पवार व एकनाथ शिंदे उप- मुख्यमंत्री बनेंगे। विधानसभा चुनाव के नतीजे 23 नवंबर को आए, पर उसके बाद 11 दिन तक सत्ता में साझेदारी तय करने की जैसी लंबी कवायद चली है, वह अपने आप में मिसाल है। कई बार ऐसा लगा कि महाराष्ट्र की सियासत में तोड़फोड़ की स्थिति बन जाएगी, पर सत्ता में वापसी करने वाले गठबंधन ने अंततः एकजुट रहते हुए विवाद को लगभग सुलझा लिया। जहां तक विपक्षी गठबंधन की बात है, तो उसका संख्या बल इतना घट गया कि सिवाय देखने के वह कुछ न कर पाया। देवेन्द्र फडणवीस के आने से अब महाराष्ट्र की राजनीति पटरी पर आने की उम्मीद है उन्होंने इस विश्वास को भी जीता कि 2014 से उनके नेतृत्व में महाराष्ट्र की राजनीति के जिस दौर की शुरुआत हुई, उस पर 2019 में ग्रहण लगने का कोई स्वाभाविक कारण नहीं था। 2019 में महाराष्ट्र की राजनीति अस्वाभाविक, अनैतिक और अस्थिरता के ऐसे दौर में उलझी कि राजनीतिक विचारधारा का सबसे बड़ा संभ्रम कायम हुआ इसके साथ कई गठबंधन बनें और टूटे भी। बहरहाल, असली चुनौती फडणवीस के सामने तो मंत्रालय वितरण में होंगे , शिंदे की शिवसेना को गृह मंत्रालय, शहरी विकास मंत्रालय भी चाहिए और विधानसभा अध्यक्ष का पद भी, जबकि भाजपा इन महत्वपूर्ण पदों को अपने पास रखना चाहेगी। शिंदे शायद यह चाहते थे कि पहले मंत्रालय तय हो जाए और उसके बाद ही सरकार में शामिल होने या शपथ ग्रहण का फैसला लिया जाए। कुछ भारी या बड़े मंत्रालयों के वितरण में सप्ताह भर अगर लग जाए, तो आश्चर्य नहीं होगा । झारखंड जैसे सरल राज्य में भी मंत्रिमंडल गठन में गठबंधन के दबावों की वजह से देरी हुई है। ऐसे में, जटिल राज्य महाराष्ट्र में मंत्रिमंडल विवाद आगामी दिनों में भी बना रहे, तो आश्चर्य नहीं होगा । मजबूत गठबंधनों में जब विभिन्न दलों के बीच बराबरी का व्यवहार होगा, तो विभाग वितरण में परेशानी होगी ही । गठबंधन में हरेक दल को अपनी-अपनी ताकत के अनुरूप आचरण करना चाहिए, पर ऐसा हर बार संभव नहीं होता है। छोटा दल भी अधिकतम पद और शक्ति लेना चाहता है, यही सियासत है और इसे जो बड़ा राजनीतिक दल साध लेता है, वह सहजता से सत्ता में कायम रहता है। खैर संतुलन न्यूज आशा करता है कि फडणवीस सरकार महाराष्ट्र के विकास को और रफ्तार देगी।