Narkatia जिले का गहन विश्लेषण

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By Diti Tiwari

Narkatiya: नरकटिया विधानसभा क्षेत्र बिहार राज्य के पश्चिमी चंपारण जिले में स्थित एक महत्वपूर्ण निर्वाचन क्षेत्र है। यह Valmikinagar लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है। यह इलाका सीमावर्ती क्षेत्र, कृषि प्रधान भू-भाग, और सामाजिक-राजनीतिक दृष्टि से सक्रिय माने जाने वाले क्षेत्रों में गिना जाता है। नरकटिया की भौगोलिक स्थिति नेपाल सीमा के निकट है, जिससे यहाँ सीमा व्यापार, संस्कृति का आदान-प्रदान, और बहुजातीय सहभागिता देखने को मिलती है। इस क्षेत्र की राजनीतिक स्थिति समय-समय पर बदलती रही है, और यहाँ पर आमतौर पर मुकाबला भाजपा, राजद, जदयू और कांग्रेस जैसे दलों के बीच होता आया है।

Narkatia विधानसभा की सांस्कृतिक धरोहर

Narkatia क्षेत्र न केवल राजनीतिक दृष्टि से सक्रिय है, बल्कि इसकी सांस्कृतिक धरोहर भी गहरी और विविधतापूर्ण है। यह इलाका थारू जनजाति, भोजपुरी बोलने वाले समुदायों, और नेपाल सीमा से लगे गांवों की मिश्रित संस्कृति को अपने में समेटे हुए है। यहाँ भोजपुरी लोकगीत, सोहर, कजरी, और विवाह-परंपरा के गीत आज भी ग्रामीण परिवेश में बड़े आदर और भावनात्मक जुड़ाव के साथ गाए जाते हैं। छठ पूजा यहाँ का सबसे प्रमुख पर्व है, जिसे सामाजिक समरसता और आध्यात्मिक श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इसके अलावा हरिहर क्षेत्र मेला, सरस्वती पूजा, ईद, और दुर्गा पूजा जैसे पर्व भी सामूहिक उत्साह के साथ मनाए जाते हैं, जिनमें हिंदू-मुस्लिम एकता की झलक साफ दिखाई देती है।नजनजातीय समुदायों विशेषकर थारू समाज की अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक परंपराएं हैं — जैसे पारंपरिक नृत्य, गीत, वेशभूषा और भोजन — जो इस क्षेत्र को सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध और विविध बनाते हैं। सीमा से सटे होने के कारण यहाँ नेपाल और बिहार की सांस्कृतिक आदान-प्रदान की परंपरा भी वर्षों से चली आ रही है।

Narkatia का उपनाम
Narkatia विधानसभा क्षेत्र का कोई आधिकारिक या लोकप्रिय उपनाम व्यापक रूप से प्रचलन में नहीं है, जैसा कि कुछ अन्य ऐतिहासिक या सांस्कृतिक रूप से चर्चित क्षेत्रों में होता है। हालांकि, स्थानीय संदर्भों और सामाजिक चर्चाओं में कभी-कभी इसे “सीमा संस्कृति का संगम स्थल” या “थारू अंचल” जैसे नामों से संबोधित किया जाता है, क्योंकि यह क्षेत्र थारू जनजाति की पारंपरिक बसाहट और नेपाल सीमा से सांस्कृतिक प्रभाव का केंद्र रहा है।

इसके अलावा, कुछ लोग इसे “विजयी भूमि” भी कहते हैं क्योंकि यहां चुनावी इतिहास में कई दिग्गज नेताओं ने करियर की शुरुआत या मजबूती पाई है। हालाँकि यह उपनाम प्रचार माध्यमों में स्थापित नहीं हुआ है, परन्तु स्थानीय पहचान और सांस्कृतिक मेल-जोल की दृष्टि से नरकटिया की एक विशेष पहचान अवश्य है।

Narkatia विधानसभा की विशेषताएं

  1. सीमावर्ती भौगोलिक संरचना:
    Narkatia, बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले की वह सीमा विधानसभा है जो नेपाल की सीमा से सटा हुआ है। यह भौगोलिक स्थिति इसे सिर्फ रणनीतिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत संवेदनशील बनाती है। सीमा पार आवाजाही, नेपाल के साथ स्थानीय व्यापार, और थारू समाज की सांझी संस्कृति, इस क्षेत्र को एक विशिष्ट सामाजिक पहचान देती है, जो चुनावी नारों और वादों में जगह पाती है।
  2. थारू जनजातीय प्रभाव और उनकी राजनीतिक भागीदारी:
    Narkatia विधानसभा क्षेत्र में थारू समुदाय एक संगठित और सांस्कृतिक रूप से सशक्त जनजाति है। इनकी आबादी विधानसभा क्षेत्र के कई हिस्सों में निर्णायक भूमिका में है। पिछले कुछ वर्षों में थारू समुदाय ने राजनीतिक चेतना में तेजी से वृद्धि की है, और अब ये वर्ग अपने सामाजिक प्रतिनिधित्व और राजनीतिक भागीदारी को लेकर अधिक संगठित है। ऐसे में कोई भी दल थारू समाज की उपेक्षा नहीं कर सकता।
  3. बहुजातीय सामाजिक संरचना और गठबंधन राजनीति की भूमिका:
    Narkatia की जातीय बनावट ऐसी है जिसमें कोई एक जाति पूर्ण बहुमत में नहीं है। यहाँ यादव, मुस्लिम, राजपूत, ब्राह्मण, कुशवाहा, दलित (विशेषकर पासवान और चमार) व थारू समुदाय का मिश्रण है। इस बहुजातीय बनावट के कारण यहाँ पर चुनावी सफलता उन्हीं को मिलती है जो गठबंधन, समावेशी प्रत्याशी चयन, और जमीनी पहुंच में सक्षम होते हैं। दलों को अक्सर मजबूत सामाजिक गठजोड़ खड़ा करना पड़ता है।
  4. कार्यकर्ता आधारित चुनाव क्षेत्र:
    Narkatia उन सीटों में गिना जाता है जहाँ उम्मीदवार की व्यक्तिगत छवि, कार्यकर्ताओं की मेहनत और बूथ स्तरीय नेटवर्किंग निर्णायक होती है। जातीय आंकड़ों से ज़्यादा, यहाँ यह देखा गया है कि किस पार्टी का संगठन ज़मीनी स्तर पर कितना सक्रिय है, यह परिणाम को प्रभावित करता है।
  5. क्षेत्रीय मुद्दों की चुनावी ताकत:
    इस विधानसभा क्षेत्र में अभी भी बेरोजगारी, खराब सड़कें, सीमित स्वास्थ्य सेवाएं, स्कूलों की खराब स्थिति और उद्योगों का अभाव बड़े मुद्दे हैं। इन समस्याओं का प्रभाव जातीय समीकरणों से भी अधिक गहरा होता है, विशेषकर युवा मतदाताओं पर। चुनावी वादों में अगर इन मुद्दों को प्राथमिकता मिलती है, तो वह किसी भी दल के लिए जनमत को प्रभावित करने में निर्णायक हो सकता है।
  6. पलायन और रोजगार का बड़ा सवाल:
    हर साल बड़ी संख्या में युवा और मजदूर वर्ग रोजगार के लिए दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र आदि राज्यों की ओर पलायन करते हैं। इस कारण “स्थानीय रोजगार की गारंटी”, “कौशल विकास”, और “स्टार्टअप प्रोत्साहन” जैसे वादे यहाँ के मतदाताओं को सीधे प्रभावित करते हैं। जो दल इस दिशा में ठोस योजनाएं सामने लाता है, उसे लाभ मिल सकता है।
  7. महिला मतदाता और सरकारी योजनाओं का प्रभाव:
    प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्ज्वला योजना, राशन वितरण योजना, वृद्धावस्था पेंशन आदि ने महिला मतदाताओं और वंचित वर्गों पर असर डाला है। ये योजनाएं किसी खास दल को “core support base” देने का काम करती हैं। लेकिन यदि क्रियान्वयन कमजोर रहा हो, तो यही वर्ग नाराज़ मतदाता में भी तब्दील हो सकता है।

Narkatia विधानसभा की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह कोई भी चुनाव सिर्फ जातीय समीकरणों या लहर से नहीं जीतता। यहाँ स्थानीय स्तर की पकड़, जातीय संतुलन, मुद्दों की समझ, और प्रत्याशी की लोकप्रियता चुनावी गणित को तय करती है। यह क्षेत्र राजनीतिक दलों के लिए चुनौतीपूर्ण ज़रूर है, लेकिन एक सटीक रणनीति से जीता जा सकता है।

Narkatia जिले की विधानसभा
Narkatia विधानसभा, बिहार विधान सभा की कुल 243 सीटों में से एक महत्वपूर्ण सीमा क्षेत्रीय सीट है, जिसकी संख्या 10 है। यह पश्चिम चंपारण जिले के पूर्वी हिस्से में स्थित है और वाल्मीकिनगर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है। भौगोलिक रूप से यह नेपाल सीमा से सटा हुआ है, जिससे इसे रणनीतिक, सामाजिक और प्रशासनिक दृष्टि से विशेष दर्जा प्राप्त है। इस क्षेत्र की राजनीतिक पहचान सीमावर्ती ग्रामीण इलाकों की बहुजातीय संरचना, थारू जनजातीय प्रभाव, और सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों से गहराई से जुड़ी हुई है।

विधानसभा संख्या की दृष्टि से यह शुरुआती खंडों में आता है, और राजनीतिक दलों के लिए अक्सर टेस्टिंग ज़ोन के रूप में देखा जाता है। कई बार यह क्षेत्र उत्तर बिहार की चुनावी दिशा तय करने वाले क्षेत्रों में भी गिना गया है। यहाँ के मतदान रुझानों और सामाजिक समीकरणों को देखकर आसपास के कई क्षेत्रों में प्रचार रणनीति तय की जाती है।

नरकटिया का क्षेत्रीय स्वरूप ज्यादातर ग्रामीण, अर्ध-शहरी और सीमावर्ती है, जो इसे विशेष बनाता है। यहाँ पंचायती सत्ता संरचना, स्थानीय नेतागण की पकड़, और सीमा के पार से सामाजिक संबंधों का भी चुनावी प्रक्रिया पर प्रभाव पड़ता है। यही वजह है कि चुनाव में यहाँ का जनादेश हमेशा सीधा नहीं, बल्कि गहराई से समझे गए समीकरणों पर आधारित होता है।

नरकटिया विधानसभा के कद्दावर नेता
नरकटिया विधानसभा क्षेत्र ने समय-समय पर कई प्रभावशाली और जनाधार वाले नेताओं को उभारा है, जिन्होंने न केवल स्थानीय राजनीति को दिशा दी, बल्कि जिला और राज्य स्तर पर भी पहचान बनाई।

  1. शकील अहमद खान (राजद):
    राजद के वर्तमान विधायक शकील अहमद खान इस क्षेत्र की राजनीति का एक प्रमुख चेहरा हैं। वे 2020 में विजयी हुए और क्षेत्र में मुस्लिम-यादव समीकरण के मजबूत नेता माने जाते हैं। उनका ज़मीनी जुड़ाव, स्पष्ट वक्तव्य शैली और स्थानीय मुद्दों पर मुखरता ने उन्हें एक प्रतिनिधि नेतृत्व के रूप में स्थापित किया है। वे विधानसभा में भी सक्रिय रहते हैं और विपक्षी दलों के खिलाफ मुखर रुख रखते हैं।
  2. श्याम बिहारी प्रसाद (भाजपा):
    श्याम बिहारी प्रसाद पूर्व विधायक रहे हैं और भाजपा के वरिष्ठ नेता माने जाते हैं। उन्होंने संगठन स्तर पर भाजपा को इस सीमाई क्षेत्र में स्थापित करने में बड़ी भूमिका निभाई। 2010 के आसपास उनकी लोकप्रियता चरम पर थी और वे सवर्ण एवं अति पिछड़ा वर्ग के बीच अच्छा समर्थन रखते थे। वे भाजपा के प्रारंभिक विस्तारकाल के स्थानीय स्तंभ माने जाते हैं।
  3. स्थानीय पंचायत स्तर के उभरते चेहरे:
    हाल के वर्षों में कुछ युवा नेता और मुखिया भी उभरे हैं, जिन्होंने अपने प्रभावशाली काम और सामाजिक सक्रियता के बल पर राजनीतिक ध्यान आकर्षित किया है। इनमें विशेषकर कुछ मुस्लिम, थारू और दलित समुदायों से आने वाले लोग अब चुनावी विकल्पों के रूप में देखे जा रहे हैं।
  4. थारू समाज के प्रतिनिधि चेहरे:
    थारू समुदाय से जुड़े कुछ सामाजिक कार्यकर्ता और क्षेत्रीय नेता अब धीरे-धीरे राजनीतिक मंच की ओर बढ़ रहे हैं। इनके उभरने से इस समुदाय की राजनीति में भागीदारी बढ़ी है, जो भविष्य में जातीय समीकरणों को नई दिशा दे सकती है।

नरकटिया विधानसभा की राजनीति पर फिलहाल राजद का दबदबा है, परंतु भाजपा और अन्य दल भी सामाजिक समीकरणों और स्थानीय चेहरों को लेकर सक्रिय रणनीति अपना रहे हैं। आगामी चुनाव में यहाँ के कद्दावर नेताओं की भूमिका निर्णायक होगी, विशेषकर तब जब जातिगत संतुलन और जनआधार का सवाल सामने हो।

नरकटिया विधानसभा के पिछले चुनावों का परिणाम
वर्ष 2020

बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में नरकटिया सीट से राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रत्याशी शकील अहमद खान विजयी हुए। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उम्मीदवार को हराया। इस चुनाव में राजद को मुस्लिम-यादव मतदाताओं का मजबूत समर्थन मिला, वहीं भाजपा के खिलाफ कुछ स्थानीय नाराज़गी और बेरोजगारी जैसे मुद्दे निर्णायक साबित हुए। शकील अहमद की साफ-सुथरी छवि, विपक्षी गठबंधन का फायदा और क्षेत्रीय जुड़ाव ने उन्हें जीत दिलाई।

वर्ष 2015
2015 के चुनाव में नरकटिया से भाजपा के प्रत्याशी श्याम बिहारी प्रसाद ने जीत दर्ज की थी। यह चुनाव उस समय हुआ था जब केंद्र में भाजपा की सरकार थी और बिहार में भाजपा-जदयू का गठबंधन टूटा हुआ था। फिर भी भाजपा ने यहां सवर्ण, अति पिछड़ा और कुछ हद तक महिला मतदाताओं के भरोसे अपनी स्थिति मज़बूत रखी। श्याम बिहारी को स्थानीय संगठनों और पार्टी कार्यकर्ताओं का अच्छा समर्थन मिला।

वर्ष 2010
2010 में भी इसी सीट से भाजपा के श्याम बिहारी प्रसाद ही विजयी रहे। तब बिहार में भाजपा-जदयू का गठबंधन था और नीतीश कुमार की सरकार को शासन और विकास के लिए सराहा जा रहा था। इस चुनाव में सरकार के कामकाज, कानून-व्यवस्था में सुधार, और ग्रामीण विकास योजनाओं का लाभ भाजपा को मिला।

वर्ष 2005 (अक्टूबर)
अक्टूबर 2005 के चुनाव में नरकटिया विधानसभा से राजद के मोहम्मद जमीलुर रहमान ने जीत दर्ज की। यह समय राजद के लिए चुनौतीपूर्ण था लेकिन इस सीट पर मुस्लिम-यादव समीकरण और स्थानीय पकड़ के चलते वे अपनी सीट बचाने में सफल रहे।

वर्ष 2005 (फरवरी)
इस वर्ष हुए पहले चुनाव में भी राजद के मोहम्मद जमीलुर रहमान ने जीत हासिल की थी। हालांकि राज्य में त्रिशंकु विधानसभा बनी और बाद में दोबारा चुनाव करवाने पड़े, फिर भी यह दर्शाता है कि उस समय नरकटिया में राजद की स्थिति मजबूत बनी हुई थी।

नरकटिया विधानसभा का इतिहास बताता है कि यह क्षेत्र भाजपा और राजद के बीच सीधी टक्कर वाला रहा है। राजनीतिक संतुलन जातीय समीकरण, स्थानीय प्रत्याशी की छवि और मुद्दों पर आधारित रहा है। 2020 में राजद ने भाजपा की दो बार की जीत को तोड़ा, लेकिन 2025 की दिशा फिर नए समीकरण तय करेंगे।

पिछले चुनाव (2020) के जीत के कारण

  1. मजबूत सामाजिक आधार (MY समीकरण):
    राजद प्रत्याशी शकील अहमद खान को मुस्लिम और यादव मतदाताओं का भरपूर समर्थन मिला। यह वोट बैंक नरकटिया में अच्छी संख्या में मौजूद है और राजद का परंपरागत आधार रहा है, जिसे इस चुनाव में बड़ी हद तक एकजुट रखा गया।
  2. भाजपा के खिलाफ स्थानीय असंतोष:
    भाजपा के पूर्व विधायक के कार्यकाल को लेकर जनता में कुछ वर्गों में असंतोष था। स्थानीय समस्याएं जैसे सड़क, रोजगार, अस्पताल, और युवाओं के पलायन को लेकर लोगों में नाराज़गी थी, जिसे विपक्ष ने मुद्दा बनाया और प्रभावी ढंग से उठाया।
  3. उम्मीदवार की साफ-सुथरी छवि और ज़मीनी जुड़ाव:
    शकील अहमद खान की छवि एक सरल, जनता के बीच रहने वाले और गैर-विवादास्पद नेता की रही। वे क्षेत्र में सामाजिक रूप से सक्रिय रहे और जनता से सीधा संवाद बनाए रखा, जिसने उन्हें जनसमर्थन दिलाया।
  4. महागठबंधन की ताकत:
    राजद को कांग्रेस और वामदलों जैसे सहयोगी दलों का समर्थन प्राप्त था, जिससे मतों का बिखराव कम हुआ। महागठबंधन की एकजुटता ने राजद प्रत्याशी को एक मजबूत विकल्प के रूप में स्थापित किया।
  5. बेरोजगारी और पलायन जैसे मुद्दों का प्रभाव:
    2020 का चुनाव ऐसे समय हुआ जब कोरोना महामारी के बाद बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर वापस लौटे थे। सरकार की ओर से राहत प्रबंधन को लेकर नाराज़गी और स्थायी रोजगार की मांग को विपक्ष ने चुनावी हथियार की तरह इस्तेमाल किया।
  6. महिला और युवा मतदाताओं की आंशिक नाराजगी:
    हालांकि केंद्र की योजनाएं महिला मतदाताओं को प्रभावित कर रही थीं, लेकिन ज़मीनी क्रियान्वयन की धीमी गति और बेरोजगार युवाओं में निराशा ने भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगाने का काम किया।

2020 में नरकटिया की जनता ने स्थानीय मुद्दों और सामाजिक समीकरणों के आधार पर परिवर्तन को चुना। राजद ने अपने पारंपरिक आधार को संगठित रखा, मजबूत प्रत्याशी मैदान में उतारा और सरकार विरोधी लहर का लाभ उठाकर निर्णायक जीत दर्ज की।

2020शकील अहमद खान – राष्ट्रीय जनता दल (राजद)
2015श्याम बिहारी प्रसाद – भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)
2010श्याम बिहारी प्रसाद – भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)
2005 (October)मोहम्मद जमीलुर रहमान – राष्ट्रीय जनता दल (राजद)
2005 (February)मोहम्मद जमीलुर रहमान – राष्ट्रीय जनता दल (राजद)
विधानसभा गठन के उपरांत निर्वाचित विधायक एवं विजय दल

यह सूची स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि नरकटिया सीट पर राजद और भाजपा के बीच सीधी प्रतिस्पर्धा रही है। एक ओर जहाँ भाजपा को सवर्ण, अति पिछड़ा और महिला मतदाताओं का समर्थन मिला, वहीं राजद ने मुस्लिम-यादव समीकरण और स्थानीय प्रत्याशियों के बल पर जीत दर्ज की। हर चुनाव में मतदाताओं ने बदलाव को प्राथमिकता दी है, जिससे यह सीट हाई-वोलटेज और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती है।

नरकटिया विधानसभा का जातिगत समीकरण
नरकटिया विधानसभा क्षेत्र की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता इसकी बहुजातीय संरचना है। यहाँ कोई एक जाति निर्णायक स्थिति में नहीं है, जिससे हर चुनाव में गठबंधन और जातीय संतुलन तय करता है कि विजय किसे मिलेगी। यह क्षेत्र पूरी तरह जातीय ध्रुवीकरण से प्रभावित नहीं होता, लेकिन जातिगत समीकरण चुनावी गणित में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।

  1. मुस्लिम मतदाता (20-22%):
    मुस्लिम समुदाय नरकटिया विधानसभा का एक मजबूत वोट बैंक है। इनका प्रभाव खासकर शहरी क्षेत्रों, सीमावर्ती गांवों और कुछ पंचायतों में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। यह वर्ग पारंपरिक रूप से राजद के पक्ष में झुका रहा है, हालांकि स्थानीय मुस्लिम प्रत्याशी होने पर इनका समर्थन किसी भी दल को मिल सकता है।
  2. यादव मतदाता (15-17%):
    यादव समुदाय राजद का परंपरागत सामाजिक आधार है और यहाँ इनकी मौजूदगी अच्छी संख्या में है। राजद को यहाँ अपने “MY समीकरण” (मुस्लिम-यादव) से लाभ मिलता रहा है। यदि पार्टी प्रत्याशी यादव समुदाय से नहीं होता, तब भी यह वोट आमतौर पर पार्टी के साथ ही रहता है।
  3. ब्राह्मण, राजपूत, भूमिहार (कुल 18-20%):
    यह सवर्ण वर्ग परंपरागत रूप से भाजपा का आधार रहा है। इनमें राजपूतों की संख्या अपेक्षाकृत अधिक है, जिनकी पकड़ खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में है। अगर भाजपा किसी सवर्ण प्रत्याशी को उतारती है, तो यह वर्ग एकजुट हो जाता है। हालांकि स्थानीय स्तर पर नेतृत्व की ताकत और सेवा भाव सवर्ण वोटों में विभाजन भी ला सकता है।
  4. कुशवाहा, पासवान, अन्य ओबीसी (20-22%):
    अति पिछड़ा वर्ग और दलित समुदाय इस क्षेत्र में अच्छी संख्या में हैं। कुशवाहा, नाई, विश्वकर्मा, तेली जैसे समुदाय भाजपा और जदयू का पारंपरिक आधार रहे हैं। वहीं पासवान और चमार जाति के वोट कुछ स्थानों पर लोजपा (अब एलजेपी रामविलास) और राजद के बीच बंटते रहे हैं। ये समूह अक्सर प्रत्याशी की छवि, स्थानीय पकड़ और जातीय पहचान के आधार पर निर्णय लेते हैं।
  5. थारू जनजाति (7-9%):
    यह समुदाय सीमावर्ती क्षेत्र की सांस्कृतिक आत्मा है। हालाँकि अभी तक किसी भी मुख्यधारा दल ने थारू समुदाय से प्रत्याशी नहीं उतारा है, फिर भी अब यह वर्ग राजनीतिक चेतना के साथ अपने अधिकारों और प्रतिनिधित्व की मांग करने लगा है। थारू वोट अब एक ‘टारगेट ग्रुप’ बन गया है।

नरकटिया विधानसभा में कोई एक जाति चुनाव नहीं जिताती, बल्कि बहुजातीय समर्थन हासिल करने वाला उम्मीदवार ही विजय प्राप्त करता है। यहाँ का राजनीतिक समीकरण पूरी तरह “गठबंधन + उम्मीदवार की छवि + स्थानीय संगठनात्मक मजबूती” के त्रिकोण पर टिका होता है। जातीय संतुलन बिगड़ते ही चुनावी गणित बदल जाता है, इसलिए यहाँ की राजनीति में हर वर्ग निर्णायक है — चाहे वो बहुसंख्यक हो या सीमित संख्या वाला।

Narkatia विधानसभा क्षेत्र की वर्तमान स्थिति

Narkatia विधानसभा क्षेत्र की वर्तमान राजनीतिक स्थिति को देखें तो यह स्पष्ट है कि यहाँ पर फिलहाल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) का प्रभाव कायम है। वर्ष 2020 में शकील अहमद खान ने निर्णायक जीत दर्ज की थी, और तब से लेकर अब तक उन्होंने क्षेत्रीय मुद्दों पर सक्रियता दिखाई है। राजद का परंपरागत मुस्लिम-यादव समीकरण (MY factor) अभी भी काफी हद तक एकजुट नजर आता है, जिससे पार्टी को मजबूत आधार मिला हुआ है।

हालांकि, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इस सीट पर लगातार संगठन मजबूत कर रही है। भाजपा की कोशिश है कि सवर्ण, अति पिछड़ा वर्ग और महिला मतदाताओं को एकजुट कर एक वैकल्पिक सामाजिक समीकरण तैयार किया जाए। पार्टी यहां पर स्थानीय असंतोष, विकास कार्यों की कमी, और जनता के बीच सीधा संवाद न होने जैसे बिंदुओं को उठाकर सत्ता विरोधी लहर पैदा करने की रणनीति पर काम कर रही है।

क्षेत्र में कुछ वर्गों में विकास कार्यों को लेकर मिश्रित प्रतिक्रिया है। सड़क, स्वास्थ्य केंद्र, रोजगार, शिक्षा जैसी बुनियादी समस्याएं अब भी पूरी तरह हल नहीं हुई हैं। युवा मतदाताओं में बेरोजगारी और पलायन के मुद्दे गहरे हैं। वहीं महिलाओं और वृद्धजन के बीच राज्य व केंद्र सरकार की योजनाओं का प्रभाव बना हुआ है।

स्थानीय समीकरण और 2025 की संभावना
अगर राजद अपने वर्तमान विधायक के जनसंपर्क और ज़मीनी पकड़ को बनाए रखती है, तो उसे लाभ मिल सकता है, लेकिन यदि भाजपा कोई सशक्त और सामाजिक रूप से संतुलित प्रत्याशी लाती है, तो मुकाबला कड़ा हो सकता है। साथ ही, थारू समुदाय और दलित मतदाताओं की चुप्पी भी इस बार चुनावी नतीजों को प्रभावित कर सकती है।

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