Navratri 2025 पहला दिन: मां शैलपुत्री पूजा विधि, महत्व और शुभ मुहूर्त

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By Akanksha Singh Baghel

नवरात्रि का आरंभ

Navratri 2025,का पहला दिन शक्ति उपासना का शुभारंभ माना जाता है। इस दिन माता दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मां शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इस नाम से जानी जाती हैं। वह वृषभ पर सवार और दाहिने हाथ में त्रिशूल तथा बाएँ हाथ में कमल धारण करती हैं।

मां शैलपुत्री कौन हैं?

नवरात्रि के पहले दिन पूजी जाने वाली देवी को मां शैलपुत्री कहा जाता है। “शैल” का अर्थ है पर्वत और “पुत्री” का अर्थ है पुत्री, यानी वे पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं।
मां शैलपुत्री को नवदुर्गा का प्रथम स्वरूप माना जाता है। वे अपने दाहिने हाथ में त्रिशूल रखती है। और बाएं हाथ में कमल धारण करती हैं। तथा नंदी बैल पर सवार रहती हैं।
शक्ति, साहस और संयम का प्रतीक यह स्वरूप साधकों को आध्यात्मिक शक्ति और आत्मविश्वास प्रदान करता है।


मां शैलपुत्री की कथा और महत्व

    पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां शैलपुत्री का पूर्व जन्म सती के रूप में हुआ था। सती ने भगवान शिव से विवाह किया था, लेकिन पिता दक्ष द्वारा भगवान शिव का अपमान सहन न कर पाने के कारण उन्होंने यज्ञ कुंड में आत्मदाह कर लिया।
    इसके बाद वे हिमालय की पुत्री शैलपुत्री के रूप में जन्मीं और पुनः भगवान शिव की पत्नी बनीं।
    नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की आराधना करने से साधक की आत्मा शुद्ध होती है और जीवन में धैर्य, शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।

    घटस्थापना का महत्व


    पहले दिन घटस्थापना की परंपरा है। इसे नवरात्रि की आत्मा कहा जाता है। शुभ मुहूर्त में मिट्टी के पात्र में जौ बोए जाते हैं । उसके ऊपर जल से भरा कलश स्थापित किया जाता है। इस कलश पर नारियल, आम के पत्ते और लाल वस्त्र बांधकर देवी शक्ति का आह्वान किया जाता है। घटस्थापना से घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है और यह समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

    पूजन विधि
    1. सुबह स्नान के बाद साफ वस्त्र धारण करें।
    2. कलश स्थापना कर मां शैलपुत्री का ध्यान करें।
    3. धूप, दीप, पुष्प, अक्षत और दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।
    4. लाल फूल और लाल चंदन चढ़ाकर मां से सुख-समृद्धि की कामना करें।
    पहले दिन का रंग और महत्व


    Navratri 2025 के पहले दिन का विशेष रंग पीला माना जाता है। यह रंग ऊर्जा, सकारात्मकता और खुशहाली का प्रतीक है। श्रद्धालु पीले वस्त्र धारण कर पूजा करते हैं ताकि घर में सुख-शांति बनी रहे।

    भोग और प्रसाद


    मां शैलपुत्री को पहले दिन घी का भोग लगाया जाता है। मान्यता है कि इस भोग से साधक को निरोगी काया और लंबी आयु प्राप्त होती है। भक्त घी का दीपक भी जलाते हैं जिससे घर की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।

    पहले दिन का ज्योतिषीय प्रभाव


    Navratri 2025,ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, मां शैलपुत्री चंद्रमा की अधिष्ठात्री देवी हैं। इस दिन पूजा करने से चंद्र दोष से मुक्ति मिलती है और मानसिक शांति प्राप्त होती है। जिन लोगों की कुंडली में चंद्रमा कमजोर होता है, उनके लिए यह पूजा विशेष रूप से फलदायी है।

    सांस्कृतिक परंपराएँ
    • भारत के विभिन्न राज्यों में पहले दिन की पूजा अलग-अलग विधियों से होती है।
    • उत्तर भारत में कलश स्थापना और दुर्गा सप्तशती का पाठ प्रमुख है।
    • पश्चिम बंगाल में ढाक की धुन और देवी पंडालों की सजावट शुरू हो जाती है।
    • गुजरात में इस दिन से गरबा और डांडिया की शुरुआत होती है।
    • दक्षिण भारत में कलश स्थापना के साथ घरों में देवी की मूर्तियों और खिलौनों का प्रदर्शन (बॉम्बे/गोलू) किया जाता है।

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