Nemaline Myopathy: पूर्व CJI की बेटियों को है यह दुर्लभ बीमारी, जानिए लक्षण, कारण और इलाज
हाल ही में भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ चर्चा में आए, जब उन्होंने बताया कि वह अब तक सरकारी आवास में केवल इसलिए टिके हुए हैं क्योंकि उनकी गोद ली हुई बेटियाँ—प्रियंका और माही—“नेमालाइन मायोपैथी” नामक एक दुर्लभ और गंभीर बीमारी से ग्रसित हैं।

यह रोग इतना असामान्य है कि बहुत से लोगों ने इसका नाम भी पहली बार सुना होगा। ऐसे में यह जानना ज़रूरी हो जाता है कि यह बीमारी क्या है, इसके लक्षण क्या होते हैं, किन कारणों से होती है, और इसका इलाज कितना संभव है।
क्या है Nemaline Myopathy?
नेमालाइन मायोपैथी (Nemaline Myopathy) एक दुर्लभ अनुवांशिक मांसपेशीय रोग है, जो मुख्य रूप से मांसपेशियों की कमजोरी और उनके विकास में असमान्यता पैदा करता है। यह जन्मजात बीमारी होती है और आमतौर पर नवजात शिशु या शैशवावस्था (infancy) में इसके लक्षण दिखने लगते हैं। हालांकि कुछ मामले किशोरावस्था या वयस्क उम्र में भी सामने आए हैं।
यह बीमारी मांसपेशियों के अंदर स्थित “नेमालाइन बॉडीज़” (एक प्रकार की असामान्य संरचनाएं) के जमा होने की वजह से होती है, जो मांसपेशियों के सामान्य कामकाज में बाधा डालती हैं।
कितनी गंभीर होती है यह बीमारी?
यह बीमारी जीवन के लिए गंभीर हो सकती है और इसके लक्षणों की तीव्रता व्यक्ति से व्यक्ति में भिन्न होती है। कुछ बच्चों में इसके हल्के लक्षण हो सकते हैं, जबकि कुछ मामलों में यह जानलेवा हो सकती है।
इस बीमारी के कारण मरीज की मांसपेशियाँ कमजोर होती जाती हैं, जिससे वे:
- सिर उठाने में असमर्थ होते हैं
- सही ढंग से बैठ या खड़े नहीं पाते
- निगलने, सांस लेने और बोलने में कठिनाई होती है
- फेफड़ों की मांसपेशियाँ भी कमजोर हो जाती हैं, जिससे मरीज को वेंटिलेटर सपोर्ट की आवश्यकता पड़ सकती है
लक्षण क्या हैं?
नेमालाइन मायोपैथी के लक्षण आमतौर पर जन्म के कुछ समय बाद दिखने लगते हैं। इसमें मुख्यतः निम्नलिखित लक्षण हो सकते हैं:
- मांसपेशियों में सामान्य से कम ताकत
- शिथिल शरीर (Floppy Baby Syndrome)
- सांस लेने में कठिनाई
- निगलने में परेशानी
- बोलने में कठिनाई या विलंबित भाषा विकास
- चेहरा पतला और लंबा होना (“myopathic facies”)
- स्कोलियोसिस (रीढ़ की हड्डी का टेढ़ापन)
- फेफड़ों में संक्रमण का खतरा बढ़ जाना
कैसे होती है यह बीमारी?
यह बीमारी अनुवांशिक (Genetic) होती है, यानी यह माता-पिता के जीन के ज़रिए बच्चे को मिलती है। इसमें प्रमुख रूप से ACTA1 और NEB नामक जीनों में बदलाव देखा गया है। ये जीन शरीर में मांसपेशियों की संरचना और उनकी कार्यप्रणाली को नियंत्रित करते हैं।
कई मामलों में माता-पिता को स्वयं इस बीमारी के कोई लक्षण नहीं होते, लेकिन वे बीमारी के वाहक (carriers) होते हैं और उनके बच्चों में बीमारी के सक्रिय होने की संभावना होती है।
भारत में स्थिति
भारत में यह बीमारी बहुत ही दुर्लभ है और इसके मामले दर्ज तो होते हैं, लेकिन जागरूकता की कमी के कारण इसकी समय पर पहचान नहीं हो पाती। भारत में जेनेटिक टेस्टिंग और विशेष इलाज की सुविधाएं अब शहरों में उपलब्ध हैं, लेकिन यह अब भी एक महंगा और लंबा इलाज है।
पूर्व CJI की बेटियों को भी यह बीमारी होने के कारण उन्हें घर में ICU जैसे माहौल की आवश्यकता होती है—जहाँ ऑक्सीजन सपोर्ट, वेंटिलेशन, और निरंतर नर्सिंग सुविधा मौजूद हो। यही वजह है कि परिवार को विशेष सुविधाओं वाले सरकारी आवास में रहने की ज़रूरत पड़ी।
इलाज क्या है?
अभी तक नेमालाइन मायोपैथी का कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन लक्षणों के आधार पर उपचार किया जाता है, ताकि मरीज को एक बेहतर जीवन दिया जा सके। इसमें शामिल हैं:
- फिजियोथेरेपी: मांसपेशियों की ताकत बनाए रखने और शरीर को एक्टिव रखने में मदद करती है
- वेंटिलेटरी सपोर्ट: सांस लेने में तकलीफ होने पर मरीज को नॉन-इनवेसिव वेंटिलेशन या ट्रैकिओस्टॉमी की जरूरत पड़ सकती है
- भाषा और निगलने की थेरेपी
- न्यूट्रिशन मैनेजमेंट: पोषण संतुलित बनाए रखने के लिए कभी-कभी नली द्वारा खाना देना पड़ता है
- दवाइयां: संक्रमण, मांसपेशी ऐंठन, और सांस की समस्या को नियंत्रित करने के लिए
क्या इस बीमारी से उबरना संभव है?
नेमालाइन मायोपैथी एक आजीवन बीमारी है, लेकिन कुछ मामलों में हल्के लक्षणों वाले मरीज स्कूल जा सकते हैं और सामान्य जीवन जी सकते हैं। लेकिन जो गंभीर रूप में पीड़ित होते हैं, उन्हें विशेष देखभाल और जीवन भर मेडिकल सपोर्ट की आवश्यकता होती है।
निष्कर्ष
नेमालाइन मायोपैथी एक गंभीर लेकिन कम चर्चित बीमारी है, जिसके बारे में भारत में बहुत कम जागरूकता है। पूर्व CJI डीवाई चंद्रचूड़ की पारिवारिक परिस्थिति इस बीमारी की जटिलताओं और इसके सामाजिक प्रभाव को सामने लाने का अवसर है।
जरूरत है कि इस बीमारी के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी साझा की जाए, ताकि समय रहते मरीजों को पहचानकर उचित इलाज मिल सके और परिवारों को सामाजिक सहयोग एवं सहानुभूति प्रदान किया जा सके।