No Risk Of Lung Disease Due To Poor AQI? : सरकार का अजीब तर्क और सवालों की स्याही

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By Akanksha Singh Baghel

दिल्ली-NCR में वायु प्रदूषण की चिंता

No Risk Of Lung Disease Due To Poor AQI?, दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) लगातार “खराब” से “बहुत खराब” और कई जगह “गंभीर” श्रेणी में दर्ज हो रहा है। हाल के दिनों में दिल्ली में AQI 300–400 से ऊपर रिकॉर्ड किया गया है, जिससे घना स्मॉग छा गया है और सांस लेने वाली हवा जहरीली-सी महसूस हो रही है।

ऐसे में लाखों लोग और विशेषज्ञ इस बात को लेकर चिंतित हैं कि क्या यह खराब हवा सच में फेफड़ों और संपूर्ण स्वास्थ्य पर प्रभाव डाल रही है या नहीं — खासकर सर्दियों में जब परिस्थितियाँ और भी बिगड़ जाती हैं।


सरकार का चौंकाने वाला बयान

19 दिसंबर 2025 को संसद (राज्यसभा) में प्रदूषण और स्वास्थ्य के संबंध में एक सवाल के लिखित जवाब में पर्यावरण राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने कहा कि उच्च AQI और फेफड़ों की बीमारियों के बीच सीधा, निर्णायक वैज्ञानिक डेटा मौजूद नहीं है। यानी सरकार के अनुसार, अभी तक यह साबित नहीं हुआ है कि जब AQI खराब होता है तो वह सीधे फेफड़ों की बीमारी का कारण बनता है।

यह उत्तर भाजपा सांसद लक्ष्मीकांत बाजपेयी द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में दिया गया, जिसमें सांसद ने दिल्ली-NCR में लंबे समय तक खराब AQI के संपर्क में रहने से फेफड़ों में रेशा जैसा (fibrosis) नुकसान और क्षमता में गिरावट जैसे प्रभावों के बारे में जानकारी मांगी थी।

सरकार ने यह भी स्वीकार किया कि वायु प्रदूषण सांस सम्बन्धी बीमारियों को ट्रिगर करने वाले कारकों में से एक है, लेकिन “सीधे तरीके से AQI के स्तर और किसी विशिष्ट फेफड़े की बीमारी के बीच संबंध स्थापित करने वाले निर्णायक अध्ययन अभी तक उपलब्ध नहीं हैं।”


क्या यह वैज्ञानिक समुदाय की बात है?

सरकार का तर्क यह है कि कैलिब्रेटेड, निर्णायक, और बड़े पैमाने पर डेटा-सपोर्ट वाले अध्ययन, जो सीधे AQI के स्तर के साथ फेफड़े की रोग दर (जैसे COPD, फाइब्रोसिस आदि) को जोड़ते हैं, अभी उपलब्ध नहीं हैं।

हालाँकि, यह महत्वपूर्ण है कि वैज्ञानिक और स्वास्थ्य विशेषज्ञ लंबे समय से यह बताते आए हैं कि वायु प्रदूषण – खासकर पीएम2.5 और पीएम10 जैसे सूक्ष्म प्रदूषक – फेफड़ों और अन्य अंगों के लिए जोखिम कारक हैं। कई अध्ययनों में इससे अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) और फेफड़ों की कार्यक्षमता में गिरावट जैसे खतरे देखे गए हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य समुदाय भी बता चुके हैं कि लंबे समय तक खराब हवा में रहने से सांस से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं का जोखिम बढ़ता है – हालांकि सरकार के मुताबिक सीधे AQI स्तर पर आधारित विस्तृत ठोस डेटा कम है। (यह हिस्सा सामान्य स्वास्थ्य शोधों पर आधारित है, जैसा कि स्वास्थ्य अध्ययन बताते हैं।)


आलोचना और सवाल

No Risk Of Lung Disease Due To Poor AQI? सरकार के बयान को विशेषज्ञ, पर्यावरण कार्यकर्ता और आम जनता ने सवालों के घेरे में रखा है:

  • लोगों की अनुभवी हकीकत: दिल्ली-NCR में सांस संबंधी शिकायतें, अस्थमा के मामलों में वृद्धि और बच्चों के बीच स्वास्थ्य समस्याएं गहरी चिंता का विषय बनी हुई हैं।
  • वैज्ञानिक समुदाय का फोकस: हालांकि सरकार कह रही है कि “सीधे लिंक” सिद्ध नहीं हुआ है, वैज्ञानिक अक्सर कहते हैं कि बेहतर डेटा तथा नियंत्रित अध्ययनों की जरूरत है ताकि यह स्पष्ट रूप से दिखाया जा सके कि किस स्तर तक प्रदूषण विशेष रोगों को जन्म देता है।
  • जनता की उम्मीद: नागरिक उम्मीद कर रहे हैं कि सरकार स्वास्थ्य प्रभावों को गंभीरता से ले और प्रदूषण नियंत्रण के लिए ठोस कदम उठाए — न कि सिर्फ यह कहकर सवाल खत्म कर दे कि “डेटा नहीं है।”
  • दिल्ली-NCR में AQI लगातार “बहुत खराब/गंभीर” स्तर पर है।
  • सरकार ने संसद में कहा कि AQI और फेफड़ों की बीमारी के बीच निर्णायक डेटा उपलब्ध नहीं है।
  • विशेषज्ञ और अध्ययन लंबे समय से प्रदूषण के स्वास्थ्य प्रभावों की बात करते आए हैं।
  • जनता और विशेषज्ञ अब मांग कर रहे हैं कि प्रदूषण और स्वास्थ्य संबंधी शोध तथा नीतियाँ और मजबूत हों।

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