असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने राज्य की जनसंख्या संरचना को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि “एक धर्म विशेष के लोगों द्वारा जनसंख्या में तेजी से वृद्धि और ज़मीन पर कब्जा असम की सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान को मिटाने की साज़िश है।” सीएम सरमा ने दावा किया कि राज्य में “अवैध तरीके से बसाए जा रहे लोग न केवल जंगलों और सरकारी ज़मीन पर कब्जा कर रहे हैं, बल्कि जनगणना और मतदाता सूची को भी प्रभावित कर रहे हैं।” उन्होंने इस पूरी प्रक्रिया को “जनसंख्या जिहाद” की संज्ञा दी।
बंगाली भाषा का ज़िक्र, विवाद तेज़
मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि जनगणना में ‘बंगाली’ मातृभाषा लिखना विदेशी पहचान को चिन्हित करने में मदद करेगा। इस बयान पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। टीएमसी ने आरोप लगाया कि यह भाषा और धर्म के आधार पर लोगों को बांटने की कोशिश है।
160 वर्ग किलोमीटर ज़मीन “मुक्त” करने का दावा
सरमा ने प्रेस वार्ता में बताया कि राज्य सरकार ने अब तक 160 वर्ग किलोमीटर से अधिक सरकारी और वन भूमि को अतिक्रमण से मुक्त किया है। उन्होंने इसे “सांस्कृतिक और भू-राजनीतिक सुरक्षा” से जोड़ते हुए कहा कि “हम असम को असम ही रहने देंगे।”
विपक्ष ने बताया “धार्मिक ध्रुवीकरण”
कांग्रेस, TMC और AIUDF जैसे दलों ने इस बयान की आलोचना करते हुए कहा कि यह “चुनावी ध्रुवीकरण की रणनीति” है। टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने कहा, “क्या अब किसी की भाषा ही उसे विदेशी बना देगी? यह असम की विविधता का अपमान है।”
चुनावी साल में बयान के राजनीतिक मायने
मुख्यमंत्री का यह बयान ऐसे समय में आया है जब राज्य में पंचायत चुनाव नज़दीक हैं और 2026 में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं। ऐसे में यह बयान सिर्फ एक प्रशासनिक चिंता नहीं, बल्कि एक बड़ा राजनीतिक संदेश भी माना जा रहा है।