रोहिणी आचार्य के आरोप: लालू परिवार में बढ़ती कलह

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By Akanksha Singh Baghel

विवाद की शुरुआत: रोहिणी का सार्वजनिक एलान

रोहिणी आचार्य के आरोप, बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में RJD को मिली हार के बाद, रोहिणी आचार्य ने अचानक राजनीति छोड़ने और परिवार से नाता तोड़ने की घोषणा की।
उन्होंने सोशल मीडिया (X) पर बेहद भावुक पोस्ट शेयर की, जिसमें उन्होंने अपने साथ हुए कथित अपमान की बात कही।


अपमान और दुर्व्यवहार के आरोप

रोहिणी ने आरोप लगाया कि उन्हें अपशब्द कहे गए, गंद-गंदी गालियाँ दी गईं और कभी चप्पल तक उठाई गई।

उनका कहना है कि उन्होंने अपने पिता को किडनी दान की, लेकिन बाद में किडनी को “गंदी” कहा गया और कहा गया कि उन्होंने इसके बदले में करोड़ों रुपये और लोकसभा टिकट की मांग की।

रोहिणी ने यह भी आरोप लगाया कि तेजस्वी यादव के करीबी लोगों — संजय यादव और रमिज नेमत खान — ने उन्हें यह मांग करने के लिए कहा था, और वे खुद इस “नाटक” को लेने की भूमिका पर मजबूर थीं।


पारिवारिक टूटन की गहराई

उनके इस खुलासे के बाद, लालू परिवार में दरार और गहराती दिख रही है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, तीन और बेटियाँ — राजलक्ष्मी, रागिनी और चंदा — अपने बच्चों के साथ पटना स्थित परिवार घर छोड़कर दिल्ली रवाना हो गई हैं।

यह कदम यह दर्शाता है कि विवाद सिर्फ एक बयान तक सीमित नहीं है, बल्कि पारिवारिक असंतोष का विस्तार हो चुका है।


राजनीतिक चेहरे पर दांव

रोहिणी ने सीधे तौर पर तेजस्वी यादव के नेतृत्व और उनकी नीतियों पर सवाल उठाया है। उन्होंने कहा है कि “उनकी चुनिन्दा टीम” परिवार के अंदरूनी मामलों में अपना प्रभुत्व बना रही है।

इस पूरे विवाद का बड़ा राजनैतिक मतलब यह है कि RJD की हार के बाद परिवार के अंदरूनी मतभेद सामने आने लगे हैं, और यह पार्टी की भविष्य की रणनीति और नेतृत्व पर बड़ा असर डाल सकता है।


भावनात्मक बयान: रोहिणी का दर्द और आत्म-सम्मान

रोहिणी आचार्य के आरोप, रोहिणी ने कहा है,


आगे का असर – परिवार और RJD दोनों पर गहरा झटका

RJD की छवि प्रभावित: इस तरह की पारिवारिक कलह पार्टी की जनता के सामने एक कमजोर छवि पेश कर सकती है।

खुली विद्रोह की राह: यह स्पष्ट हो गया है कि रोहिणी जैसे परिवार सदस्यों द्वारा उठाया गया कदम सिर्फ निजी सवाल नहीं, बल्कि राजनीतिक और नैतिक सवाल है।

चुनावी रणनीति पर असर: आने वाले चुनावों में यह विवाद RJD के मतदाताओं के बीच असमंजस पैदा कर सकता है, खासकर उन वोटरों में जो परिवार को पार्टी की “रूढ़-रिवाज और संबंधों” के प्रतीक के रूप में देखते थे।

परिवार में दीर्घकालीन विभाजन: अगर यह मामला सुलझा न हुआ, तो लालू परिवार की अंदरूनी एकता और भविष्य के राजनीतिक उत्तराधिकार पर सवाल खड़े हो सकते हैं।

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