Chhath puja का दूसरा दिन : खरना की पवित्रता ,विशेष महत्व और प्रसाद की महक

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By Akanksha Singh Baghel

Chhath puja महापर्व का दूसरा दिन ‘खरना’ या ‘लोहंडा’ के नाम से जाना जाता है। यह दिन छठ व्रत का सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र चरण होता है। इसी दिन व्रती निर्जला उपवास की शुरुआत करते हैं और शाम को सूर्यदेव को अर्घ्य देकर प्रसाद ग्रहण करते हैं। खरना का अर्थ है — शुद्धता, संयम और आत्मबल की परीक्षा।


खरना का धार्मिक महत्व

खरना के दिन व्रती सुबह स्नान कर पूरे दिन निर्जल उपवास रखते हैं। दिनभर वे भगवान सूर्य और छठी मइया की आराधना करते हैं। सूर्यास्त के समय व्रती नदी, तालाब या घर के आंगन में पवित्र स्थान बनाकर सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित करते हैं। इसके बाद पूजा कर प्रसाद के रूप में ‘खरना का भोग’ ग्रहण करते हैं और परिवार, पड़ोसी एवं रिश्तेदारों में बांटते हैं।

यह दिन शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। इस दिन घर को लीप-पोतकर शुद्ध बनाया जाता है, पूजा स्थल पर दीपक जलाया जाता है और पूरे वातावरण में भक्ति की सुगंध फैल जाती है।


विशेष भोग का महत्व

खरना के दिन जो भोग तैयार किया जाता है, वह बेहद सात्विक और बिना किसी तामझाम का होता है। इसमें लहसुन-प्याज का प्रयोग नहीं किया जाता। मुख्य रूप से दो चीजें बनती हैं — गुड़-चावल की खीर और घी की रोटी।

खरना भोग बनाने की विधि (Kharna Bhog Recipe):

  1. गुड़-चावल की खीर (रसी खीर):

सामग्री:

अरवा चावल – 1 कप

दूध – 1 लीटर

गुड़ – 1 कप (स्वादानुसार)

देसी घी – 1 छोटा चम्मच

तुलसी पत्ता या केला का टुकड़ा (भक्ति प्रतीक के रूप में)

विधि:

  1. सबसे पहले मिट्टी के चूल्हे पर घी गरम करें और उसमें थोड़ा पानी डालकर चावल पकाएं।
  2. जब चावल आधे पक जाएं, तब उसमें दूध डालें और धीमी आंच पर खीर को पकने दें।
  3. जब खीर गाढ़ी हो जाए, गैस बंद करें और थोड़ा ठंडा होने पर उसमें गुड़ मिलाएं।
  4. ध्यान रखें कि गुड़ डालते समय खीर उबल न रही हो, नहीं तो फट जाएगी।
  5. मिट्टी या कांसे के बर्तन में खीर को परोसें और पूजा में अर्पित करें।
  6. घी की रोटी (रोट/ठेकुआ जैसी)

सामग्री:

गेहूं का आटा – 2 कप

पानी – आवश्यकता अनुसार

देसी घी – 2 चम्मच

विधि:

  1. आटे में पानी डालकर सख्त आटा गूंथ लें।
  2. रोटी बेलें और तवे पर घी लगाकर दोनों तरफ से सुनहरी सेकें।
  3. यह रोटी खीर के साथ प्रसाद के रूप में ग्रहण की जाती है।

लोक परंपरा और आस्था का संगम

शाम होते ही जब सूर्य अस्त होता है, तब व्रती छठ मइया के गीत गाते हुए प्रसाद अर्पित करते हैं —
“कांचे हियाँ भइल खरना के बेर, छठ मइया घर आइलें…”

गांवों में चारों ओर मिट्टी के चूल्हों की सुगंध, गुड़ की मिठास और गीतों की गूंज वातावरण को भक्तिमय बना देती है। इस दिन का भोग केवल भोजन नहीं बल्कि आस्था, त्याग और कृतज्ञता का प्रतीक माना जाता है।


अगले दिन की तैयारी और उत्साह

खरना के साथ ही Chhath Puja का मुख्य चरण शुरू हो जाता है। अगले दिन यानी तीसरे दिन ‘संध्या अर्घ्य’ की तैयारी होती है, जब घाटों पर लाखों दीप जलाए जाते हैं और महिलाएं छठी मइया से संतान, सुख-समृद्धि और आरोग्य का आशीर्वाद मांगती हैं। खरना की रात का उपवास और भोग व्रती को अगले दिन के महापर्व के लिए शक्ति और शुद्धता प्रदान करता है।

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