Supreme Court vs High Court: न्यायिक सेवा नियमों पर टकराव

Photo of author

By Akanksha Singh Baghel

Supreme Court vs High Court,सुप्रीम कोर्ट और देश के कई हाईकोर्ट्स के बीच इन दिनों राज्य न्यायिक अधिकारियों (State Judicial Officers) के सेवा नियमों और पदोन्नति प्रक्रिया को लेकर मतभेद गहरा गया है।
मूल मुद्दा यह है कि जिला न्यायाधीशों की भर्ती, प्रमोशन और सेवा शर्तें तय करने का अधिकार किसके पास हो — सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट?


इलाहाबाद हाईकोर्ट की आपत्ति

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट से स्पष्ट शब्दों में कहा है कि:

राज्य न्यायिक अधिकारियों के सेवा नियमों का ढांचा तैयार करना हाईकोर्ट का अधिकार है।

सुप्रीम कोर्ट को इसमें “हैंड्स-ऑफ अप्रोच” यानी हस्तक्षेप न करने की नीति अपनानी चाहिए।

अनुच्छेद 227(1) के तहत जिला अदालतों की निगरानी हाईकोर्ट के पास है, इसलिए प्रशासनिक और सेवा मामलों पर नियंत्रण भी उसका ही होना चाहिए।

सीनियर एडवोकेट राकेश द्विवेदी ने हाईकोर्ट की ओर से कहा कि:

“सुप्रीम कोर्ट को जिला न्यायाधीशों की भर्ती, प्रमोशन और सेवानिवृत्ति से जुड़े नियम तय नहीं करने चाहिए। हाईकोर्ट को कमजोर करने के बजाय सशक्त किया जाना चाहिए।”


अन्य हाईकोर्ट्स का भी समर्थन

इलाहाबाद ही नहीं, बल्कि पंजाब-हरियाणा, केरल, बिहार और दिल्ली हाईकोर्ट्स के प्रतिनिधियों ने भी सुप्रीम कोर्ट की दखलअंदाजी पर आपत्ति जताई।
उनका कहना है कि:

मौजूदा प्रणाली ठीक तरह से काम कर रही है।

किसी नए कोटा या नियम परिवर्तन की आवश्यकता नहीं है।

हर राज्य की परिस्थितियाँ अलग हैं, इसलिए सेवा नियम भी राज्य-विशिष्ट ही होने चाहिए।


सुप्रीम कोर्ट का पक्ष

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा:

“हमारा उद्देश्य हाईकोर्ट की शक्तियों को कम करना नहीं है। हम सिर्फ यह देखना चाहते हैं कि जिला न्यायाधीशों की पदोन्नति के लिए समान दिशा-निर्देश (Uniform Guidelines) बनाए जा सकते हैं या नहीं।”

इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि “ऑल इंडिया ज्यूडिशियल सर्विस (AIJS)” की अवधारणा अभी विचाराधीन है — यानी देशभर में न्यायिक अधिकारियों के लिए एक समान राष्ट्रीय सेवा संरचना बनाने पर अभी चर्चा जारी है।


जिला न्यायाधीश के प्रमोशन की मौजूदा प्रणाली

वर्तमान में तीन रास्तों से जिला न्यायाधीश बनाए जाते हैं:

  1. वरिष्ठता के आधार पर प्रमोशन
  2. प्रत्यक्ष भर्ती (Direct Recruitment)
  3. सीमित विभागीय प्रतियोगी परीक्षा (Limited Departmental Competitive Exam)

इनका अनुपात पहले 50:25:25 था।
फिर 2010 में इसे 65:25:10 किया गया।
बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इसे दोबारा 50:25:25 पर लौटा दिया।

संतुलन की जरूरत

Supreme Court vs High Court,यह विवाद केवल अधिकारों का नहीं, बल्कि संविधान में तय शक्ति-संतुलन का भी सवाल है।
जहाँ सुप्रीम कोर्ट समानता और एकरूपता की बात कर रहा है, वहीं हाईकोर्ट्स अपने संवैधानिक स्वतंत्र अधिकार की रक्षा करना चाहते हैं।
आने वाले फैसले से यह तय होगा कि जिला न्यायपालिका पर सर्वोच्च नियंत्रण किसके पास रहेगा — सुप्रीम कोर्ट के हाथ में या राज्यों के हाईकोर्ट्स के।

Leave a Comment

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.